सुनो......
ना सोने का छल्ला चाहिए, ना चांदी का।
और Diamond का बिल्कुल भी नहीं।।
बस जिन हसीन गली से होकर तुम आओगे।
वहां से एक फूल ले आना, अगर देना ही हो कोई तोहफा।
तो अपनी कोई छाप छोड़ जाना।।-
छल्ला बना पहना आया
अपनी 'रूह' को उनकी ऊँगली पर
इस जिस्म में तो अब केवल
एक 'फूँक' रहती है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
Silk की साड़ी हो ,
जो मैने डाली हो ,
उस पर सजता ,
कमर का छल्ला ,
तेरे प्यार की निशानी हो ।
♥♥-
तुम एक डायमंड रिंग प्रिये
मैं लोहे का छल्ला हूँ
तुम शो रूम में सजी हुई
मैं फुटपाथ पे बैठा निठल्ला हूँ-
ना जाने वो कौन,
दिल का अमीर आशिक़ है,’सागर’
महबूब की ख़ातिर,
जो छल्ले में चाँद पिरो लाया !-
मेनू भा गया छल्ला चाँदी का.........
जैसे प्यारो है गाँधी जी को कपड़ा खादी का।
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ऊँगली
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उसकी ऊँगली में छल्ला था
था मेरे नाम का,हल्ला था
वो संग मेरे जब जलती थी,
तो पकता सारा मोहल्ला था...
गेहूँ की ही बलियों संग-संग
हम खेतों में पका करते थे
चाँद पर जब होते थे हम
सूरज को तका करते थे...
उसकी आँखों में डूबता था
मैं तैरके बाहर आता था
इश्क़ से मेरे भीगती थी वो
मैं हुश्न से तर हो जाता था...
दिल ने लुटकर इश्क़ कमाया
अब रहा कहाँ निठल्ला था?
वो संग मेरे जब जलती थी,
तो पकता सारा मोहल्ला था...-