ज़िन्दगी से हमेशा छत्तीस का आँकड़ा रहा मेरा
खुश रहने लगी तो इसने तुझे बना दिया महबूब मेरा-
"त्रैंसठ का कर लो
छत्तीस के आँकड़े को,
पहन लो अपनेे हाथों में
मेरे दिए स्वर्ण कड़े को"-
छत्तीस का आँकड़ा
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छत्तीस का आंकड़ा हो जाता है मेरा उनसे
जब वो सोलह सिंगार कर बैठी रहती है
आईने से अपनी तारीफ़ सुनना चाहती है
और मैं उनके तारीफ़ में कुछ लाइनें कह देता हूँ...
कितनी अच्छी लगती हो
केश सज्जा में पड़ोस वाली लगती हो
होंठों से आफ़ीस वाली दिखती हो
आँखो से दिल्ली वाली भाभी जैसी चमकती हो
गालों से पार्क वाली दोस्त जैसी लगती हो....
फ़िर वो कहती है
मेरे चेहरे का धिमका फ़लाना करते हो !
उन चुड़ैलों से मेरी तुलना करते हो!
मैं कहता हूँ
नहीं मेरी जान, "तुम बहुत अच्छी हो "
दिल से बहुत सच्ची हो
सिर्फ़ ...." चेहरा छोड़कर"!!! 👀👀
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छत्तीस का आंकड़ा...🌞🌚
मैंने चाँद से पूछा - आज बता ही दो कि ..
सूरज के आते ही भला तुम,क्यूँ चले जाते हो..?
क्या सूरज से तुम्हारी कोई लड़ाई है ..!
ये बात तो मुझे ,बिल्कुल समझ न आई है ..!
या ज़्यादा रोशनी तुम्हें, पसंद नहीं..!
शायद इसीलिए, तुम पल भर भी रुकते नहीं..!
चाँद ने कहा - ये तो है सृष्टि का संतुलन ..!
रात और दिन में होता है, एक सुंदर परिवर्तन ..!
छत्तीस का आंकड़ा तो इसे तुम बिल्कुल न समझना .!
ये तो ईश्वर ने एक सुन्दर रीत बनाई है..!
सुख दुःख साथ आयें तो कैसे समझोगे,
कि, इस क्रम में कितनी गहराई है..!
मधु मिश्रा, ओडिशा.. ✍️18 /30
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इश्क़ और नसीब के बीच
छत्तीस का आँकड़ा था,
इश्क़ जब भी कदम चलता
नसीब रोड़ा लिए खड़ा था,
इश्क़ दिल के लिए एक नहीं
सौ-सौ बार लड़ा था,
इश्क़ से लेकिन नसीब मेरा
कई गुना बड़ा था,
इश्क़ मेरे सीने में बेशकीमती
हीरे की तरह जड़ा था,
इश्क़ के लिए लेकिन नसीब
जाने क्यों अड़ा था,
इश्क़ ज़िन्दगी के मोड़ पर
दर्द से लथपथ पड़ा था,
इश्क़ के सीने पर नसीब
गुरूरमंद हो कर चढ़ा था!!
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" छत्तीस का आँकड़ा "
......................................... 18/30
आज भी नहीं बनती है मेरी उससे
आये दिन अक्सर लड़ाई हो ही जाती है हमसे
बोलचाल बन्द , मुँह फुलाई आज भी होती है हममें ।
थी कभी जब वह मेरी फिर भी बीच था छत्तीस का आँकड़ा
आज गैर की गुलशन में महककर ,
लड़ती है , झगड़ती है मगर प्यार करती है बहुत !
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छत्तीस के आँकड़े की कहावत नयी नहीं है
इसकी पैठ हमारे जीवन में घनी है,
छत्तीस के आँकड़े का बनना कोई बुरा नहीं है
इसे बने देने रहना भी कोई सही नहीं है,
किसने किससे क्या कहा यह हमारे मन में
पैठता घना है,अतीत की बुरी यादों का इसमें
हाथ बड़ा है,
छत्तीस के आँकड़ें के बनने का कारण यही है,
मन को तनावरहित रखा कीजिये
मन में किसी के प्रति बैर अधिक दिनों तक
रखा न किजिए,
छत्तीस का आँकड़ा बन ही न पाएगा
जीवन मुस्कुराएगा।
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#छत्तीस का आँकड़ा
जिनसे छत्तीस का आँकड़ा रहता है,
मन उनसे भरा-भरा सा रहता है ,
हाज़मा हमेशा बिगड़ा रहता है
और मुँह ज़नाब खुला रहता है,
बर्दाश्त का डेरा हरदम उजड़ा रहता है।
सच उनसे भी हज़म नहीं होता,
सो वह चिढ़ा-चिढ़ा सा रहता है,
फ़ासले बर्दाश्त नहीं होते,
पीठ टिकाने का ज़रिया रहता है,
छत्तीस का जो आँकड़ा रहता है।
पास रह कर भी खिंचा-खिंचा सा रहता है,
हिसाब इक अधूरा सा बना रहता है,
नज़र में हमेशा चढ़ा सा रहता है,
जिनसे छत्तीस का आँकड़ा रहता है।
फिर भी उनसे क्यूँ वास्ता रहता है?
जनाब!
मुक़ाबले का इक अलग
मज़ा होता है,
जिनसे छत्तीस का आँकड़ा रहता है।
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