जो तुमने मुझसे किया, क्या वो वफ़ा थी
जो तुमने मुझसे किया, क्या वो हया थी
मोहब्बत तो मैं भी करता था तुमसे बहुत
फ़िर क्यूँ ये ज़िन्दगी, मुझसे यूँ ख़फा थी
तुमनें धोखा दिया मुझे और कहा मोहब्बत
चलिए छोड़िये, वो कौनसी पहली दफ़ा थी
कितनी दुआयें माँगी हम दोनों के लिए मैंने
मिरी दुआ में श़ायद, कभी बहुत शिफ़ा थी
प्यार की बुनियाद ही झूठ पर रखी थी श़ायद
तुम मिरी रूह से चले गये, श़ायद इक हवा थी
चेहरे के पीछे चेहरा छुपा रखा था तुमने दोस्त
मैं तुमसे सच कहता रहा, पर तुम्हें श़र्म कहाँ थी
तुम्हारे साथ कितनें "कोरे कागज़" भरे थे मैंने
अब पता चला मुझे, कि कलम ही बे-वफ़ा थी।
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