चूल्हे में पड़ी ठंडी राख़ अवशेष होंगी आशाओं के अवसान पर जलती हुई औरतों की .. सदियों बाद जब स्त्री को जानना होगा ढूंढने होंगे नई पीढ़ी को चूल्हें और उनकी राख़
कोई सरकारी नौकरी की तैयार में था जुटा किसी की हर रोज की कमाई से जलता है चूल्हा कोई केस मुकदमे में था न्याय की आस में फसा किसी की डोली सज कर थी घर के आँगन में तैयार कुछ लोगों के छोटे छोटे सपने सजाये थे अपनी कमाई पे कोई किसी से मिलने की आश में था वर्षो से नजरें बिछाये न जाने कितने लोंगो पे ये शीतम ढा रहा है चीन की गुस्ताख़ी की सजा पूरा देश काट रहा है
जब देखती हूं बड़े शहरों में लड़कियों को बेफिक्री से "सिगरेट के धुंए" को हवा में उड़ाते हुए, तो गांव की वो लड़कियां याद आती हैं जो आज भी 12वर्ष के उम्र से ही "चूल्हे के धुंए" में अपना "अस्तित्व" ढूंढा करती है...!!!!