"चार लोग"
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चार पैरों वाली कुर्सी पर
दो पैरों वाला बैठ कर
छः पैरों वाली अजीब
प्रजाति में तब्दील हो जाता है।-
मंजिलों तक पहुंचने के लिए
चार क़दम साथ मेरे चलते हैं।
मैं तो बस एक राह भर हु
लोग पिछे छोड़ निकल लेते हैं।-
चार दिन की जिंदगी ने
बस यही सिखाया है
कोई नहीं अपना
यहाँ क्यूँ दिल लगाया है-
दो दिन गुजारे साथ
और चार इंतजार में
न जाने कब आओगे तुम
दे जाओ साँस उधार में-
तन्हा नहीं हूँ घर में मेरे यार चार हैं,
इक मैं हूँ और संग में दीवार चार हैं।
हाकिम ने मेरी छुट्टियाँ ये कह के काट दीं,
क्यों छुट्टी जब महीने में इतवार चार हैं।
हर बार क्यों हो ज़िन्दगी के पल की ख़्वाहिशें,
जब इन पलों की गिनतियाँ हर बार चार हैं।
किससे करे ये दिल मेरा उसकी शिकायतें,
चारों तरफ़ तो उसके तरफ़दार चार हैं।
फ़ुर्क़त, अज़ाब, याद, उदासी की शक़्ल में,
दिल के मुशायरे में कलाकार चार हैं।-
राजकीय प्राथमिक स्कूल गाँधीनगर
क्या परिदृश्य हुआ करते थे
ठीक पीछे जहाँ खिडकी खुलती थी..
बसो का जमावडा, आते जाते राहगीर
यात्रियों का चढ़ना उतरना बैठना...
हमे उनको एक टक देखना खूब भाता था...
इक दिन विग्यान के शिक्षक ने रंगे हाथो पकडा
और दे दना दन,,,नन्हीं सी जान की फुटबॉल
बनाय के खूब गोल किये एक कोने से दूसरे कोने तक...
वो पिटाई......कक्षा चार की खूब याद आती हैं...
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सीढ़ियों से उतरते हुए ,
नज़र नहीं होती कभी भी उनपर
सारा ध्यान बस उतरने पर होता है
पर, उन "चार" नज़रों का क्या?
जो किस्से ढूंढ आती है उन चार कदमों में,
चढ़ने से रोक दिया जाता है
दुबारा चार बातों की दलीलों से
सीढियां कहीं नहीं जाती;
स्थिर होती हैं ।
"चार बातें" अस्थिर।-