जहाँ तक सोचा था, वहाँ तक तो साथ चलते !
क्या पता, मंजिल से ज्यादा हम ज़रूरी लगने लगते ।।-
पथ क्या जो पथिक के सम्मुख जहाँ मुश्किल न आये,
जीत क्या वह हार की अनुमति ले जो मुड़ न जाये।
मंज़िले है दूर और पथ है काँटों भरा
संभल के चलता चल, कोई कांटा चुभ न जाये।
रख विश्वास उस पर वह साथ तेरा निभाएगा।
जहां छोड़ जायेंगे सब, वही हाथ बढाये।।
मुश्किलों के पहाड़ भो हट जायेंगे, हौंसला तू जो दिखाये।
दीपक बन जलता चल, अगर अंधकार छा जाये।।
पथ क्या जो पथिक के सम्मुख जहाँ मुश्किल न आये,
जीत क्या वह हार की अनुमति ले जो मुड़ न जाये।
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तेरा चलते-चलते यूं हाथ छोड़ जाना
जैसे जिस्म से जान निकल जाना।-
This is my last post,,
जो गैर है हम तो अपना बनाया क्यों,,
रिश्ता अगर कमजोर था तो रिश्ता निभाया क्यों,,
अक्सर छोटी गलतियों का लोग बड़ी सजा देते है,,
जब जाना ही था तो अपनापन जताया क्यों,,-
कुछ जनून है ज्यादा,
और उड़ने को हैं आमादा ,
अरे!रह जाएगी दाल गलते-गलते।
हमें नाज है अपने पैरों पर
कट जाएगी जिंदगी चलते-चलते ॥
जिंदगी एक सफर है तो,
चलना सीखिए,
और संभलना सीखिए।
गिरें और चोटिल हों से अच्छा,
चलिए संभलते - संभलते।
हमें नाज अपने पैरों पर
कट जाएगी जिंदगी चलते-चलते ॥
"चलते-चलते"
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फ़ितरत नहीं बदलती मुसाफ़िरों की,
चलते भी जाना है
और
ताँक झाँक भी करते जाना है ।
अरे ओ मुसाफ़िरों !!
याद रखो
जितना कम ताँक झाँक में लगोगे
उतनी ही जल्दी रास्ता पार होगा ।-
चलो आओ कहीं चलते है
फूल कांटों में ही खिलते है
और बाहर तो कोरोना का केहर है
चलो छोड़ो सपनों में है मिलते है-
अचानक से वो मुझे मिल गये राह चलते ,
वो चल दिये और मैं खुद को भूल आयी उसी मोड़ पर ।-