'मां', मुझे कोई शंका नहीं है की मेरा मुल्क
एक दिन आजाद हो जाएगा, पर मुझे डर है की
"गोरे साहब" जिन कुर्सियों को छोड़कर जाएंगे,
उन पर "भूरे साहबों" का कब्जा हो जाएगा..!!!
:--"भगत सिंह"-
गोरे रंग से और साँवाले रंग से फर्क नही पड़ता फर्क पडता है तो वफ़ादरी से
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खो जाता हूँ.. जब भी तुम्हे,
अपने पास पाता हूँ।
एहसास हैं कुछ..जिनमे फ़ना हो जाता हूँ।
काले बाल जब लहराते हैं..
गोरे गाल जब शर्माते हैं..
फ़िर से ज़िंदा हो जाता हूँ।
खो जाता हूँ.. तुम्हारी आँखों में,
जब तुम्हारे लबों पर..अपना नाम पाता हूँ।
कैसे कह दूँ..हाल-ए-दिल,
मैं तो ख़ुद संगदिल हो जाता हूँ।
कहना चाहता हूँ.. ढ़ेर सारी बातें,
मगर मैं..बेज़ुबान हो जाता हूँ।
- साकेत गर्ग-
गोरे आरिज़ उनके ग़ुलाबी हो जाते हैं
आज भी जब हम उन्हें याद आते हैं
चुरा लेते हैं वो नज़रें ज़रा हम से अब
नज़रे चुराकर फ़िर नज़रें मिलाते हैं
- साकेत गर्ग 'सागा'-
इसी कश्मकश में
निकल गया
होली का त्यौहार।
उसके गोरे-गोरे गाल
मेरे हाथ में गुलाल
वो भी सुर्ख लाल।
जो लगा दूँ
गोरी को गुलाल..
कहीं हो ना जाये
'गोरी'..यह लाल गुलाल
कहीं हो ना जाये
गोरी के गोरे-गोरे गाल..लाल।
- साकेत गर्ग-
असली मोहब्बत तो साँवले रंग से ही है ,
गोरे तो आजादी से पहले भी बेवफा थे !-
1947 में गोरे गए तो गये.. पर गोरियां👱 क्यों गई,
हमें उनसे तो कोई शिकायत नहीं थी... 😔😜-
चलो सबसे उम्मीदें ख़तम कर दें,
Yaha sirf "Chehre" gore hain pr "Dil" kale-
वह झुका नहीं किसीके आगे ,नहीं किसी तरह मोहताज रहा
आजादी के लिए क्या क्या ना किया ,वह सदा सदा आजाद रहा
गोरे शासक उस बन्दे का.किसी भांति नही पथ डिगा सके
उसने जो मन में ठान लिया ,बस वैसा के वैसा ही किया
भारत मां की जंजीरें देख ,विचलित रहता था हर दम ही
उसने भी ठान प्रतिज्ञा ली ,आखिर दम तक लड़ता ही रहा
कभी उसने हार नहीं मानी ,ना झुका कभीभी दबाओं से
वह चला अकेला था लेकिन ,खुद के दम लश्कर खड़ा किया
तुम खून मुझे दो मैं तुमको ,आजादी दूंगा पूर्णतया
वह मरते दम ही चला गया ,पर कैद नहीं किस भांति हुआ........
आजादी के लिए.........-