आजादी चाहते हैं उस ईस्या से जो दुसरे की कामयाबी से होती है
आजादी चाहिए उन कचरे के ढेर से जाहा ना जाने कीतने बच्चों के सपनों को रो़धा जाता है
आजादी चाहिए उन बदीस्सो से जाहा नजर किसी की खराब है, बदीस्से कीसे करनी पडती है
आजादी चाहे उन ख्वाबों को जीने के लिए जीन्हे,पायल और चुड़ियों की दो खुबसूरत बेडीयो में बांध दिया जाता है
आजादी चाहते उस घम् से जाहा हिन्दू मुस्लिम , मदिंर मस्जिद देखने के चक्र में ये दिखाई नहीं देता की कल का हिदुस्तान आज कचरा बीनं कर दो वक्त का खाना कमाता है,
आजादी चाहिए इस आजाद हिदुस्तान को जो अपने ही नजरीयें का गुलाम है
क्यु ना मंदिर मस्जिद की जगह शिक्षा का ताजमहल बनाये, संगमरमर का ना सहीं कच्ची ईटों का ही सही, जो कल हिदुस्तान को बनाने में काम आये,
-