बदलें हवाएं, फिजाएं, मौसम रुख अपना
पर तुम ऐसे ही रहना....
लिख दूं तेरे इश्क़ पर किताब कई
"गुलज़ार" ना बन जाऊं तो कहना।।
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कुछ इश्क़ मुझको दे दो इनकार मत करो तुम
दिल मेरा टुकड़े-टुकड़े हर बार मत करो तुम
बस इश्क़ करते-करते मिलकर ही तो बने हम
इस दिल की ये इमारत मिस्मार मत करो तुम
कहता हो कुछ ज़माना हर हाल तुम निभाना
गुलज़ार है ये रिश्ता अख़बार मत करो तुम
जब चाहो पास आना जब चाहो दूर जाना
अब इश्क़ की हदों को फिर पार मत करो तुम
तुमसे बना है 'आरिफ़' उससे बना है रिश्ता
हम फूल इश्क़ के हैं अब ख़ार मत करो तुम-
तुम बहुत बिखरे से लग रहे हो,
संभल जाएंगे सब कुछ ,
तुम एक बार खुद को समेट कर तो देखो ।
जिंदगी भी गुलजार होगी ,
बस एक बार दुख में भी मुस्कुरा कर तो देखो ।
तुम खामोशियों को पनाह देते हो,
एक बार अपनी उलझनों को बोल कर तो देखो ।
यह वक्त भी गुजर जाएगा,
तुम इसे खुशी से जी कर तो देखो ।-
मज़हबों के बीच इक दीवार बन जाती है
बिक गया जो बस वही सरकार बन जाती है
ज़िन्दगी भी कुछ शरीफ़ों की तरफ़ है अबतक
आज रिश्वत खोर कल गुलज़ार बन जाती है
दिल जिसे चाहे उसी को प्यार कर ले इंसाँ
देखकर इक जिस्म ये दिलदार बन जाती है
कर रफ़ू कुछ ज़ख़्म अपने दर्द सहकर सबके
ज़ख़्म से उड़कर मक्खी गद्दार बन जाती है
चंद सिक्कों के लिए बिक क्यों रहा है 'आरिफ़'
जीत ऐसी बाद में फिर हार बन जाती है-
Someone asked me why you were separated......?
Me :
उसे गुलज़ार की शायरी पसंद थी,
मैं ग़ालिब की गजल लिख लाया था |
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