Atharv Kanungo   (️गुलज़ारीयत✍️)
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Joined 30 December 2019


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6 APR AT 0:12

तबियत नासाज़ है आज़ार-ए-मुहब्बत हुआ है।
उस तबीब से कह दो कोई शिविर लगाय।
इस ग़ुरबत में उसका महसुल चुकाया नही जायगा।

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5 APR AT 23:02

अब जा कर ग़ज़ल में साज़ आया है
लगता है शागिर्द ने कहीं दिल लगाया है

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4 JUL 2023 AT 4:21

तुझे भूलने की कोशिश में
मेरी कलम का हुनर भी कही गुम हुआ।
आज फिर कलम उठाई तो पता चला
तू आज भी है मुझमें कहीं छुपा हुआ।

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23 OCT 2021 AT 12:17

दौलत की नुमाइश मेरी आदत नहीं
वर्ना तुम पे लिख के सबको जलाता

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21 OCT 2021 AT 16:50

माना अब वो ख़फा है मुझसे
रूठना मानना लगा रहेगा
हां वो मुझसे दूर है थोड़ा
पर आना जाना लगा रहेगा

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21 OCT 2021 AT 12:17

इक इक तिनका जोड़ती ख़्वाब सजाती ज़िंदगी
कभी झपटती कभी तरस्ती इक इक दाने को ज़िंदगी

ख्वाहिशों की हवाओं में गोते खाती ज़िंदगी
ऊंचाइयों को छूने निकली इक परिंदे सी ये जिंदगी

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20 OCT 2021 AT 22:44

आज़माना छोड़ दो.....
इस बेदर्द ज़माने को
इसे तो बस बहाना चाहिए.....
किसी का तमाशा बनाने को

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15 JUN 2021 AT 21:36

इस हैरान परेशान दुनिया में
अंजान सा दर्द लिए फिरता हूं
कोई पूछे तो ज़रा हाल मेरा
किस क़दर ज़िंदगी बसर करता हूं

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5 JUN 2021 AT 17:06

वो शामें हवाएं इक चेहरा कुछ बातें
मेरी ख़ामोशी कुछ कहती हुई आँखें

वो रातें इरादें इक ख्वाहीश कुछ वादे
मेरी तनहाई कुछ कहती हुई दीवारें

वो मेंहदी शहनाई एक जोड़ा कुछ नाते
मेरी बर्बादी कुछ बीती हुई यादें

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29 OCT 2020 AT 22:32

खिलौने टूट जाते है
बचपन के किस्से पीछे छूट जाते है
पर जवानी की भुलभुलैया में भटकते हुए
बचपन के वो दिन बहुत याद आ जाते है

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