तबियत नासाज़ है आज़ार-ए-मुहब्बत हुआ है।
उस तबीब से कह दो कोई शिविर लगाय।
इस ग़ुरबत में उसका महसुल चुकाया नही जायगा।
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मुझे तो महज़ शब्दों से खेलने का शौक है
मेरे लिखे लफ्ज़ो... read more
तुझे भूलने की कोशिश में
मेरी कलम का हुनर भी कही गुम हुआ।
आज फिर कलम उठाई तो पता चला
तू आज भी है मुझमें कहीं छुपा हुआ।-
माना अब वो ख़फा है मुझसे
रूठना मानना लगा रहेगा
हां वो मुझसे दूर है थोड़ा
पर आना जाना लगा रहेगा-
इक इक तिनका जोड़ती ख़्वाब सजाती ज़िंदगी
कभी झपटती कभी तरस्ती इक इक दाने को ज़िंदगी
ख्वाहिशों की हवाओं में गोते खाती ज़िंदगी
ऊंचाइयों को छूने निकली इक परिंदे सी ये जिंदगी-
आज़माना छोड़ दो.....
इस बेदर्द ज़माने को
इसे तो बस बहाना चाहिए.....
किसी का तमाशा बनाने को
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इस हैरान परेशान दुनिया में
अंजान सा दर्द लिए फिरता हूं
कोई पूछे तो ज़रा हाल मेरा
किस क़दर ज़िंदगी बसर करता हूं-
वो शामें हवाएं इक चेहरा कुछ बातें
मेरी ख़ामोशी कुछ कहती हुई आँखें
वो रातें इरादें इक ख्वाहीश कुछ वादे
मेरी तनहाई कुछ कहती हुई दीवारें
वो मेंहदी शहनाई एक जोड़ा कुछ नाते
मेरी बर्बादी कुछ बीती हुई यादें-
खिलौने टूट जाते है
बचपन के किस्से पीछे छूट जाते है
पर जवानी की भुलभुलैया में भटकते हुए
बचपन के वो दिन बहुत याद आ जाते है-