कैफ़ बरदोश , बादलों को ना देख बेखबर,तू न कुचल जाएं कहीं!!
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लोग किसी को ऐसे जज करते हैं
जैसे कोई गुनाह किया हो
आप उसके मूर्जीम हो
कभी खुद को भी जज करके देखो
गुनाहों का देवता लगोगे.-
एक चेहरा दिव्यालौकिक, जिसकी नश्वर काया।
था प्रदिप्त जो दिव्यपुरूष सा, साथ मानवी छाया।
इस प्रकार था आन बसा वह नर दो दिव्य नयनों में,
जिसमें हर एक दोष उसका मिट जाता क्षण भर में।
किन्तु किसी दिन टूट जाए जो मूरत तो क्या होगा,
माना जिसको पुण्य देव, वो पतित हुआ तो फिर क्या?
किसी मनुज को ऐसे क्यों कोई देवता कहता है,
क्यों उसको भी नहीं स्वयं सा मनुज ही समझता है?-
सह न सके जब भार कोई
वास्तविकता के ज्ञान का,
ठहरे हुए पानी सा जमकर
मानव निष्क्रीय बन जाता है।
भावना सभी ख़त्म हो जाती,
संवेदनाएं मर जाती हैं।
पत्थर की मूरत से भी ज़्यादा
मानव पत्थर हो जाता है।
तरलता स्नेह का प्रतीक,
जब सूख जाती हो मन से।
भीतर से मर जाता है आदमी,
बस चलता फिरता है तन से।
जीवन संतुलन का नाम रहा
ठहराव और तरलता में।
ठहरा पोखर कचड़े का ढेर,
और ममता बहती गंगा में।
गंगा की धार ज़रूरी है
हर पोखर का बांध छुड़ाने को।
कालिख सभी मिटाकर के
मन को स्वच्छंद कर जाने को।-