भरी थी जेब तब गैर भी रोक रोक कर हाल
पूछते थे जो उजड़ गया पैसों का महल तो
अपने भी अब मौत की तारीख़ पूछते हैं-
गरीब की क्या हंसी
उड़ाई जा रही है
एक रोटी देकर
सौ-सौ तस्वीर
खींचाई जा
रही है-
सम्पन्न माँ ने
बच्चों से पूछा
'आज क्या बनाऊँ?'
विपन्न माँ ने
बच्चों को देख
स्वयं से पूछा
'आज क्या बनाऊँ?'
प्रश्न एक ही था
दोनों के अर्थ और
आर्थिक दशा भिन्न रहीं केवल।-
अपने घर में लेटे-लेटे तुम 'हिन्दू-मुस्लिम' रो लेना!
मर जाने दो मज़दूर सड़क पे उनसे तुमको क्या लेना?-
तुम रूठ गये थे जिस उम्र में खिलौना न पाकर,
वो ऊब गया था उस उम्र में कमा कमा कर...-
औरो से क्या हम तो खुद से भी धोखा नहीं करते
हम गरीब है साहब हम जमीर का सौदा नहीं करते-
रात काे दिन हम दिन काे रात कहते हैं
हम फकत अपने मन की बात कहते हैं
छाेड़ाे अब रहने दाे प्यार वियार की बातें
ऐसे आदताें काे अब खुराफात कहते हैं
वह जाे अमीराें ने खाया वह था धाेखा
गरीबाें काे जाे मिला शय मात कहते हैं
वह जाे तुमने की थी चूक सी हाे गई हाेगी
ये जाे हुआ हम से इसे वारदात कहते हैं
यहाँ जाे दवाआें के बदले बाँटता है मर्ज
दाैर की लफ्जाें में इसे शिफात कहते हैं
रहने दाे "नाहिद" तुम ये इश्क़ विश्क कि
इसे अब शाहाफत में बद-जात कहते हैं-
रोज़ शाम मैदान में बैठ ये कहतें हुए एक बच्चा रोता है,
हम गरीब है इसलिए हम गरीब का कोई दोस्त नही होता है।।
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