Pooja Agarwal   (परस्तिश)
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It's never too late to express yourself.
Joined 22 January 2019


It's never too late to express yourself.
Joined 22 January 2019
23 MAR AT 18:39

लगाना रंग कुछ ऐसे मिरे दिल-दार होली पर
करे दो चार को घायल सर-ए-बाजार होली पर

हवा में हो उठे हल-चल, बहारें रश्क कर बैठें
यूँ सर से पा लगूँ मैं प्यार में गुल-बार होली पर

निगाहों से छिड़क देना यूँ चश्म-ए-शोख़ का जादू
लगें मय का कोई प्याला मिरे अबसार होली पर

लबों की सुर्ख़ रंगत को, यूँ मलना तुम मिरे आरिज़
कि तितली गुल समझ के चूम ले रुख़्सार होली पर

अबीरों ओ गुलालों से, हो फ़नकारी मुसव्विर सी
धनक आ के गिरे दामन में अब के बार होली पर

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5 JUL 2023 AT 14:38

शराब जैसी हैं उसकी आँखें, है उसका चेहरा किताब जैसा
बहार उस की हसीं तबस्सुम, वो इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा

वो ज़ौक़-ए-पिन्हाँ, वो सबसे वाहिद, वो एक इज़्ज़त-मआब जैसा
वो रंग-ए-महफ़िल, वो नौ बहाराँ, वो नख़-ब-नख़ है नवाब जैसा

उदास दिल की है सरख़ुशी वो, वो ज़िन्दगी के सवाब जैसा
वो मेरी बंजर सी दिल ज़मीं पर, बरसता है कुछ सहाब जैसा

कभी लगे माहताब मुझ को, कभी लगे आफ़ताब जैसा
हक़ीक़तों की तो बात छोड़ो, वो ख़्वाब में भी है ख़्वाब जैसा

न बर्ग-ए-गुल सा, न वो शफ़क़ सा, न रंग वो लाल-ए-नाब जैसा
जुदा जहां का वो रंग सबसे, है उसके लब का शहाब जैसा

उसी से शेर-ओ-सुख़न हैं मेरे, उसी से तख़्लीक़ मेरी सारी
वो अक्स-ए-रू है मेरी ग़ज़ल का, मेरे तसव्वुर के बाब जैसा

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17 JAN 2023 AT 23:13

जहाँ की भीड़ में यकता दिखाई देता है
वो एक शख़्स जो प्यारा दिखाई देता है

कभी वो चाँद जमीं का मुझे है आता नज़र
कभी वो आईना रब का दिखाई देता है

वो ख़ामुशी भी है सुनता मिरी सदा की तरह
वो रूह भर से शनासा दिखाई देता है

उसी के प्यार में है दिल की धड़कनें रेहन
फ़सील-ए-दिल पे जो बैठा दिखाई देता है

वो साज़-ए-हस्ती की छिड़ती हुई कोई सरगम
लब- ए- हयात का बोसा दिखाई देता है

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13 JAN 2023 AT 13:30

किसी अब अजनबी से दिल लगा कर क्या करेंगे हम
कि अब उजड़े चमन में गुल खिलाकर क्या करेंगे हम

हैं हम टूटे हुए पत्ते हमें इन मौसमों से क्या
ख़िज़ाँ के दौर में बारिश बुला कर क्या करेंगे हम

बचा पाए न लहरों से किनारों पर मकाँ ही जब
सफ़ीने फिर समुन्दर में चला कर क्या करेंगे हम

मुहब्बत में बहुत पूजा है हम ने एक पत्थर को
भला अब शीश मन्दिर में झुका कर क्या करेंगे हम

"परस्तिश" इश्क़ का अंजाम जब मालूम है हम को
सुनहरे ख़्वाब आँखों में सजा कर क्या करेंगे हम

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7 JAN 2023 AT 14:40

किसने मुझको किया ग़म-ख़्वार न पूछो मुझसे,
था वो दुश्मन या मिरा यार‌ न पूछो मुझसे!

धुँधला - धुँधला है मिरा अक्स मेरे ज़ेहन में,
आईना देखा था किस बार न पूछो मुझसे!

मुझको मुझ-सा कोई बेज़ार नहीं आता नज़र,
किस क़दर हो गई मिस्मार न पूछो मुझसे!

इश्क़ के नाम से भी ख़ौफ़ज़दा हूँ अब तो,
कौन था शख़्स मिरा प्यार न पूछो मुझसे!

ऐसा टूटा है कि हँसना भी ये दिल भूल गया,
है मिरा कौन ख़ता-वार न पूछो मुझसे!

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7 JAN 2023 AT 14:12

कैसे बिगड़े मिरे हालात न मालूम मुझे!
वक़्त ने क्या किए ज़ुल्मात न मालूम मुझे!

टूटे रिश्ते मिरे क्यूँ काँच के पैकर की तरह,
दरमियाँ क्या हुए ख़दशात न मालूम मुझे!

मैं हूँ खोई हुई माज़ी की किन्हीं यादों में,
क्या अभी गुज़रे हैं लम्हात न मालूम मुझे!

साथ तन्हाई है औ' ग़म की फ़रावानी है,
कैसे कटते हैं ये दिन-रात न मालूम मुझे!

उसको चाहा ही नहीं मैंने परस्तिश'की है,
वस्ल की होती है क्या रात न मालूम मुझे!

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3 JAN 2023 AT 17:40

किताब-ए-ज़ीस्त में मुझे कोई निसाब ना मिला!
बहुत सवाल थे मिरे जिन्हें जवाब ना मिला!

बहुत मिले मुझे, मगर कोई सवाब ना मिला!
चले जो साथ दूर तक वो हम-रिकाब ना मिला!

गुज़र गई ये उम्र बस, चराग़-ए-ग़म के साए में,
जो रोशनी करे मुझे, वो आफ़ताब ना मिला!

बड़ी थी आरज़ू मिरी, हक़ीक़तें सँवार लूँ,
नसीब ख़ार ही हुए, कोई गुलाब ना मिला!

झुलस गए बुरी तरह से हम तो दश्त-ए-इश्क़ में,
कि आब, अब्र छोड़िए, हमें सराब ना मिला!

किसी हसीन याद का चलो ये फ़ायदा हुआ,
कटी है उम्र हिज्र में, मगर अज़ाब ना मिला!

तलाशती रही सदा, वो जिस में अक्स पा सकूँ,
पर आईने-सा,कोई शख़्स, बे-नक़ाब ना मिला!

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1 JAN 2023 AT 21:43

गर साल तरह ही जो अहवाल बदल जाते
इस ज़ीस्त के भी अपने जंजाल बदल जाते

अफ़सुर्द मिरे दिल को जो मिलता तिरा दामन
तक़दीर बदल जाती, तिमसाल बदल जाते

शतरंज सा होता कुछ ये खेल मुहब्बत का
गर मिलती सिपर हमको हम चाल बदल जाते

इन सर्द- सी रातों में हो तन्हा बसर कैसे
उफ़ हिज्र के ये मौसम फ़िलहाल बदल जाते

इस दौर-ए-गम-ए-दिल का‌ क्यूँ अंत नहीं होता
इक बार तो क़ुदरत के अफ़आ'ल बदल जाते

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1 NOV 2022 AT 20:09

कितने ताइर क़ैद है उसकी आँखों के ज़िंदानों में
चर्चा ज़ोरों पर है इक सय्यादी की काशानों में

नशा असल में तो बस उसके शीरीं लब ही रखते हैं
पागल हैं वो लोग जो पीने जाते हैं मयख़ानों में

बात हसीं शामों की हो या तन्हा भीगी रातों की
बस उसका ही ज़िक्र मिलेगा मेरे इन अफ़्सानों में

नहीं मिला वो सूनापन जो टूटे दिल में होता है
मैंने जा कर देखा है, सहराओं में, वीरानों में

ख़्वाब परस्तिश'जिसके देखे वो सच से वाबस्ता हो
एक यही अरमाँ है शामिल मेरे सब अरमानों में

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6 OCT 2022 AT 22:50

हमें ग़ज़लें तो आती हैं तराने पर नहीं आते
हैं क़िस्से तो बहुत हम पर सुनाने पर नहीं आते

इसी डर से हैं मिलते हर किसी से फ़ासलों से हम
बना सकते हैं हम रिश्ते ‌निभाने पर नहीं आते

फ़िदा हर एक इंसाँ है मिरी बस एक मुस्काँ पर
मिरे महबूब ही मुझ को लुभाने पर नहीं आते

हक़ीक़त की तो आदत है हमेशा ही रुलाने की
हमें तो ख़्वाब भी झूठे हँसाने पर नहीं आते

वो पैमाने जो आँखों से किसी की याद में छलके
बचा लो लाख दामन में छुपाने पर नहीं आते

भुला बैठा जिन्हें है वक़्त भी अब वक़्त के चलते
'परस्तिश' आज भी तुमको भुलाने पर नहीं आते

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