Pooja Agarwal   (परस्तिश)
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It's never too late to express yourself.
Joined 22 January 2019


It's never too late to express yourself.
Joined 22 January 2019
11 MAR AT 22:43

वो याद तो आता है नज़र नहीं आता
और तसव्वुर में वो असर नहीं आता

सोचा बहुत कि अब मैं भी भुला दूँ उसको
हुनर यही उस का मुझे मगर नहीं आता

हर चंद ढलती है रात मेरे आँगन में
कभी उतर कर पर वो क़मर नहीं आता

शाम परिंदे भी लौट आते हैं घर को
बस लौट कर वही मुंतज़र नहीं आता

इक परतव को परस्तिश वहाँ भी हूँ पाती
मेरा साया भी अक्सर जिधर नहीं आता

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22 DEC 2024 AT 22:10

कितनी प्यारी कितनी सुन्दर कितनी अजमल वो आँखें
देखे जो भी कर देती हैं उस को घायल वो आँखें

दिल में पसरे सन्नाटे को बाँध के अपने पोरों से
बन के धड़कन छम-छम करती जैसे पायल वो आँखें

शाम सवेरे डोले ऐसे मन के वीराँ आँगन में
दूर गगन में गोया कोई उड़ता झाँकल वो आँखें

बचने को मुश्ताक़ जहां से मस्त रुपहली क़ामत पे
शर्म हया का पैराहन या कह लो आँचल वो आँखें

उन की शोख़-निगाही के अफ़्सूँ का भी है क्या कहना
आलम सारा कर दे आबी बरखा, बादल वो आँखें

तीर-ए-मिज़्गाँ ऐसे कितने अहल-ए-दिल नख़चीर हुए
कितने बिखरे कितने तड़पे कलवल कलवल वो आँखें

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30 NOV 2024 AT 22:23

जो तुम होते मेरे हमराह, उल्फ़त और ही होती
न करते हम इबादत यूँ, अक़ीदत और ही होती

नमी होती न सफ़्हों पर, न ख़ामोशी के ये साए
तुम्हें पा कर कि पन्नों पर, इबारत और ही होती

न बहते अश्क आँखों से, न तन्हाई गले पड़ती
पनाहों में तेरी हम-दम कि आफ़त और ही होती

रहा होता ज़माने से उलझने का अगर जज़्बा
मेरे दर से तेरे दर की, मसाफ़त और ही होती

परस्तिश' ज़ीस्त से आती महकते इश्क़ की खुशबू
जो क़िस्मत की मिरे सर पर इनायत और ही होती

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26 JUN 2024 AT 14:44

ये बर्ग, ग़ुंचे, बहार-ओ-चमन वहीं के हैं
ज़मीं है जन्नती जिस की उसी हसीं के हैं

ये कहकशाँ, ये सितारे, तजल्लियाँ ओ मह
ये ज़ाविए उसी की नुक़रई जबीं के हैं

हैं रौनकें उसी की चश्म-ए-आब-दारी से
ये धुँदलके उसी की चश्म-ए-सुर्मगीं के हैं

बनफ़्श आसमाँ हो या हो सौसनी झीलें
तिलिस्म ये उसी की चश्म-ए-नीलमीं के हैं

फ़लक की गोद में बिखरे ये अब्र के फाहे
ख़याल-ओ-ख़्वाब उसी हुस्न-ए-मर्मरीं के हैं

ये ख़ुशबुएँ, ये परिंदे, ये तितलियाँ, जुगनू
असीर बस उसी के जिस्म-ए-संदलीं के हैं

लरज़ती शाख़ के दामन में ओस के मोती
अरक़ हैं जो उसी रुख़्सार-ए-मह-जबीं के हैं

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23 MAR 2024 AT 18:39

लगाना रंग कुछ ऐसे मिरे दिल-दार होली पर
करे दो चार को घायल सर-ए-बाजार होली पर

हवा में हो उठे हल-चल, बहारें रश्क कर बैठें
यूँ सर से पा लगूँ मैं प्यार में गुल-बार होली पर

निगाहों से छिड़क देना यूँ चश्म-ए-शोख़ का जादू
लगें मय का कोई प्याला मिरे अबसार होली पर

लबों की सुर्ख़ रंगत को, यूँ मलना तुम मिरे आरिज़
कि तितली गुल समझ के चूम ले रुख़्सार होली पर

अबीरों ओ गुलालों से, हो फ़नकारी मुसव्विर सी
धनक आ के गिरे दामन में अब के बार होली पर

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5 JUL 2023 AT 14:38

शराब जैसी हैं उसकी आँखें, है उसका चेहरा किताब जैसा
बहार उस की हसीं तबस्सुम, वो इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा

वो ज़ौक़-ए-पिन्हाँ, वो सबसे वाहिद, वो एक इज़्ज़त-मआब जैसा
वो रंग-ए-महफ़िल, वो नौ बहाराँ, वो नख़-ब-नख़ है नवाब जैसा

उदास दिल की है सरख़ुशी वो, वो ज़िन्दगी के सवाब जैसा
वो मेरी बंजर सी दिल ज़मीं पर, बरसता है कुछ सहाब जैसा

कभी लगे माहताब मुझ को, कभी लगे आफ़ताब जैसा
हक़ीक़तों की तो बात छोड़ो, वो ख़्वाब में भी है ख़्वाब जैसा

न बर्ग-ए-गुल सा, न वो शफ़क़ सा, न रंग वो लाल-ए-नाब जैसा
जुदा जहां का वो रंग सबसे, है उसके लब का शहाब जैसा

उसी से शेर-ओ-सुख़न हैं मेरे, उसी से तख़्लीक़ मेरी सारी
वो अक्स-ए-रू है मेरी ग़ज़ल का, मेरे तसव्वुर के बाब जैसा

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17 JAN 2023 AT 23:13

जहाँ की भीड़ में यकता दिखाई देता है
वो एक शख़्स जो प्यारा दिखाई देता है

कभी वो चाँद जमीं का मुझे है आता नज़र
कभी वो आईना रब का दिखाई देता है

वो ख़ामुशी भी है सुनता मिरी सदा की तरह
वो रूह भर से शनासा दिखाई देता है

उसी के प्यार में है दिल की धड़कनें रेहन
फ़सील-ए-दिल पे जो बैठा दिखाई देता है

वो साज़-ए-हस्ती की छिड़ती हुई कोई सरगम
लब- ए- हयात का बोसा दिखाई देता है

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13 JAN 2023 AT 13:30

किसी अब अजनबी से दिल लगा कर क्या करेंगे हम
कि अब उजड़े चमन में गुल खिलाकर क्या करेंगे हम

हैं हम टूटे हुए पत्ते हमें इन मौसमों से क्या
ख़िज़ाँ के दौर में बारिश बुला कर क्या करेंगे हम

बचा पाए न लहरों से किनारों पर मकाँ ही जब
सफ़ीने फिर समुन्दर में चला कर क्या करेंगे हम

मुहब्बत में बहुत पूजा है हम ने एक पत्थर को
भला अब शीश मन्दिर में झुका कर क्या करेंगे हम

"परस्तिश" इश्क़ का अंजाम जब मालूम है हम को
सुनहरे ख़्वाब आँखों में सजा कर क्या करेंगे हम

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7 JAN 2023 AT 14:40

किसने मुझको किया ग़म-ख़्वार न पूछो मुझसे,
था वो दुश्मन या मिरा यार‌ न पूछो मुझसे!

धुँधला - धुँधला है मिरा अक्स मेरे ज़ेहन में,
आईना देखा था किस बार न पूछो मुझसे!

मुझको मुझ-सा कोई बेज़ार नहीं आता नज़र,
किस क़दर हो गई मिस्मार न पूछो मुझसे!

इश्क़ के नाम से भी ख़ौफ़ज़दा हूँ अब तो,
कौन था शख़्स मिरा प्यार न पूछो मुझसे!

ऐसा टूटा है कि हँसना भी ये दिल भूल गया,
है मिरा कौन ख़ता-वार न पूछो मुझसे!

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7 JAN 2023 AT 14:12

कैसे बिगड़े मिरे हालात न मालूम मुझे!
वक़्त ने क्या किए ज़ुल्मात न मालूम मुझे!

टूटे रिश्ते मिरे क्यूँ काँच के पैकर की तरह,
दरमियाँ क्या हुए ख़दशात न मालूम मुझे!

मैं हूँ खोई हुई माज़ी की किन्हीं यादों में,
क्या अभी गुज़रे हैं लम्हात न मालूम मुझे!

साथ तन्हाई है औ' ग़म की फ़रावानी है,
कैसे कटते हैं ये दिन-रात न मालूम मुझे!

उसको चाहा ही नहीं मैंने परस्तिश'की है,
वस्ल की होती है क्या रात न मालूम मुझे!

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