किसी को खोना
कैसा होता है ?
पूछना है, तो पूछो
उस मॉं से
जिसने सरहद पर भेजा था
अपना नौजवान बेटा
और घर लौटा
तिरंगे में लिपटा शहीद जवान
क्योंकि दुश्मन की गोलियॉं
थमती ही नहीं,
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सब कुछ
हो कर भी दिल
में एक खालीपन सा है
अपनो के बीच रहकर भी
एक अकेलापन सा है अब उम्मीदो
का दामन छूटने को है क्या सच मे तुम्हे
पाने की चाहत में क्या खुद को खो दिया हमने
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खो कर हम सब भूल गए!
ना खुद की खबर ,ना अपनो की चिंता!
जाने क्या नशा है तुम्हारी मुहब्बत के आगोश में
जो खुद के हो कर भी खुद के ना रहे अब हम!
दुनिया कहती है गैर है हम एक दुसरे के लिए!
उन्हें क्या मालूम ये रिश्ता जिस्मानी नही बल्कि
मुक्कमल हो जाती है हमारी रूह एक दूसरे को पाकर!
जाने क्यों जलते है लोग किसी का प्यार देख कर!
गालिब ये तक़दीर का खेल होता है किसी ने पाकर!
भी खो दिया तो किसी ने सब खो कर भी पा लिया ।
शुक्रिया उन लोगो का जो हमसे नफरत करते हैं!
आज ये जानकर हमें गुरुर तो हुआ की कुछ लोग
हमारी बेइंतिहा मुहब्बत से जलते है!!!
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बच्चे तो माँ-बाप की तबीयत छोड़ जाते हैं
माँ - बाप उनके लिए वसीयत छोड़ जाते हैं
ख़ुद के दर्द की बश़र्त फ़िक्र है इन सबको
और दूसरों के लिए नसीहत छोड़ जाते हैं
अपने वक़्त की बेशक़ अहमियत है इनको
दूसरों के लम्हों की ये कीमत छोड़ जाते हैं
बाहर सबके लिए ज़हर भरा हुआ है दिल में
घर में बच्चों के लिए फ़िर सीरत छोड़ जाते हैं
बुरे वक़्त में याद आता है 'क्या खो दिया हमने'
अच्छे वक़्त में हम सबकी क़ुरबत छोड़ जाते हैं
ख़ुद को ग़ीबत में डुबा रखा है सबने "आरिफ़"
अब कहाँ लोग किसी की ज़ीनत छोड़ जाते हैं
भरकर अपने "कोरे काग़ज़" गुनाहों से ये सब
दूसरों को अब कहाँ अच्छी नीयत छोड़ जाते हैं-
हममें अब कुछ फ़ासला ज़रूरी है
उसके लिए थोड़ा हौसला ज़रूरी है
सुना है दूर रहने से प्यार बढ़ जायेगा
उसके लिए पहले बिछड़ना ज़रूरी है
अहसासों का क्या वो तो संभल जायें
पर दोनों दिलों का धड़कना ज़रूरी है
अगर चाहो खोए हुए लोगों से मिलना
तो उनके प्यार में सिसकना ज़रूरी है
प्यार की इन्तेहा अगर देखनी हो "आरिफ़"
तो उसकी याद में अब तड़पना ज़रूरी है
दूर रहकर लिख लेंगे इश़्क के "कोरे काग़ज़"
मोहब्बत की कलम का इश़्क में बहना ज़रूरी है-
हमें खो जाने की ख्वाहिश है
खो कर खुद को,
खुद को ही पाने की ख्वाहिश है
हमें हर पल
लापता हो जाने की ख्वाहिश है
कुछ और मिले न मिले
मिले तालीम तजुर्बों की
कोहनियां छील जाए चोटों से
कभी फूट पड़े हंसी होंठों से
कुछ और मिले न मिले
हम मिलेंगे खुद से
खुद के ऐसे कोने से
जिसके होने का मालूम न हो
हमें भी, तुम्हें भी
हमें खो जाने की ख्वाहिश है
खो कर खुद को,
खुद को ही पाने की ख्वाहिश है-
जाने क्या पाने में, मैं क्या कुछ खोये जा रहा हूँ,
धुन बिखरी है तब से गिरे सुर उठाये जा रहा हूँ ।-
इस तरह तेरे इश्क में मैं खो जाऊं
कि तुम मुझे जब ढूंढने आओ
हर तरफ हर ओर बस खुद को ही पाओ।।-