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कोलकाता जब पहली बार गया था
उन दिनों यह कलकत्ता था
(क्या हुआ,
कैसा लगा
पढ़िए अनुशीर्षक में)-
कोलकाता : 2
जाना दूसरी बार
(पिछले अंक में आपने पढ़ा एक मध्यवर्गीय परिवार की कहानी,
इस अंक में पढ़िए उच्चवर्गीय परिवेश की कहानी अनुशीर्षक में)-
जो कल तक औरतों का
शारीरिक/मानसिक शोषण करते थे...
अब वही लोग विरोध प्रदर्शन में
उनके लिए लड़ते दिखेंगे...
शर्म की बात तो है...-
हुगली नदी से आती
शीतल बयार
दिल में बहती
कविता की धार
काश मिल जाते
तुम एक बार
हावड़ा ब्रिज पर टहलते
इस पार से उस पार
करता प्रेम मनुहार
कैसे नहीं लिखता
पंक्तियां दो चार-
छा गईं मौसम पे
यूं मदहोशियाँ
खुद-बखुद नीयत
शराबी हो गई।
ये गुलाबी सर्दियों
का है खुमार
बॉल किरकिट की
गुलाबी हो गई।
😊एक नया अध्याय😊-
धोवत् चावल, रगड़त् दलिया; फिर घण्टन का इंतज़ार
पीसत्, कुटत, बना के गारा; पावक तल तक लेकर जात्
बच्चन्, बुढ़न्, और जवानी; सबकी प्रिय सांभर वाली
मस्तम्, चटपट, झटपट, सरपट; प्रियतम् मम् इडली आली-
जगह है तब कलकत्ता अब के कोलकाता शहर की चौरंगी लेन, स्थित साड़ियों की एक बड़ी दुकान। काउंटर पर बैठे मालिक ने सड़क के उस पार से आती तीन महिलाओं को देखा और चिल्लाते हुए कहा,
बांके तैयार हो जाओ कस्टमर आ रही हैं।
ये सुनकर बांकेलाल फुर्ती से शोरूम के पीछे बने छोटे कमरे से आया बाबू कहते हुए बाहर निकले।
छ फुट लंबे, छरहरी काया के स्वामी बांकेलाल अपनी गंजी खोपड़ी खुजाते हुए काउंटर पे आये और साड़ियां निहारने लगे। इस दौरान बांके ने दो बार अपना कुर्ता धोती सँवारा, और एक बार सिर के पीछे बचे हुए कुछ बालों को कंघी से सँवारा।
इधर बांके ने आईने पे नज़र मारी, उधर महिलाओं ने दुकान में कदम रखे।
बांके लाल ने शोरूम का दरवाजा खोला और झुक कर सलाम मेमसाहब बोला।
महिलाओं को उनका ये अंदाज बेहद पसंद आया।
मैडम कुछ चाय पानी मंगवाऊं- बांके
अरे नहीं रहने दीजिए, आप तो बस हमें साड़ियां दिखाइए। एक महिला ने कहा
क्या देखना चाहेंगी आप? शिफॉन, सिल्क, बनारसी, कॉटन, डिजाइनर...
जो लेटेस्ट फैशन में चल रहा हो, और पहनने में हल्का भी हो। दूसरी महिला
मेमसाहब कोई कलर चॉइस, पार्टी वियर, शादी के लिए या घर के लिए -बांके
आप तो बस पार्टी वियर निकालिए लेकिन ध्यान रहे साड़ी हल्की और कलर डार्क हो। तीसरी औरत
ठीक है मेमसाहब, वैसे तो हम बेवज़ह की सलाह देते नहीं हैं, लेकिन एक बात आप ज़रूर कहेंगे कि आप लोग इस बार मेरी पसंद से साड़ी पहन लीजिए।
क्रमशः-
प्रकृति रौद्र रूप ले लेती है
जब मानवता को कुष्ठ रोग हो जाता है ।-