किसी की नज़रों में भले कम लगूँ ,
फर्क ना पड़ता मुझे..कुछ ऐसा हुँ मैं।
हाँ जो खुद पे शक हो आये कभी..
बस माँ से पूछ लेता हुँ..कि बता कैसा हूँ मैं ।।-
जो टूटा ना हो, तो वो दिल कैसा ?
जो उलझी ना हो, तो वो जिंदगी कैसी ?
जो रोया ना तु, तो वो ग़म कैसा ?
जो आंखों में चमक ना हो,
तो वो हंसी कैसी ?
जो ख़्वाब को अपने तु मुक्कमल न कर पाए,
तो वो ख़्वाब कैसा ?-
गलियों में ना सही निगाहों में आ कभी
देखना है तूझे कैसा दिखता है बेनाम-
बताओ कितनी अजीब रियावत है मोहबत्त की,
जिसको पाया ही नही उसे खोना भी नही चाहते।।-
किस्मत से जो मिले...
तो सवाल कैसा???
मुझसे हुई तकलीफ़...
तो मलाल कैसा???
पहले तुम चलो या मैं...
तो ख्याल कैसा???
तुम मुझे चुन लो, मैं तुम्हें...
तो बवाल कैसा???
खुशीयां हमें जो मिले...
तो कमाल कैसा???
मंजिल भी होनी हैं एक...
रास्तो में "बदलाव" कैसा???
-
एक नये पद्य के साथ,
.....उसमें,
यह विश्राम कैसा।
तेरे हर शब्दों में,
जीवन का दर्दे विलाप है,
उस दर्द में,
यह विश्राम कैसा।
उनके लबों के,
मालिकाना हक में,
अनकहे शब्दों का,
यह विश्राम कैसा।-
जाहीर हो जाए वो दर्द कैसा ,
खामोशी ना समझ पाए वो हमदर्द कैसा !-
अगर जल्दी पूरा हो जाए तो वो सफर कैसा
और जो देर से हो वो असर कैसा
जो देर तक रुक जाए वो मेंहमान कैसा
और जहाँ चैन ना हो वो समसान कैसा
जहा भीड़ ना हो वो मेला कैसा
और जिसके साथ तू है वो अकेला कैसा
जो जल्दी पूरा हो जाए वो सपना कैसा
और जो देर से मिले फिर वो अपना कैसा
जो सब कुछ समझ गया वो परेशान कैसा
और जिसको तुजपर भरोसा हो फिर वो हैरान कैसा
जिसे सब कुछ मिल गया वो इंसान कैसा
और जो कुछ ना दे सके फिर वो भगवान कैसा
Hemant kabdwal
-