Hemant Kabdwal  
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Joined 6 August 2020


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26 MAY 2021 AT 17:56

तू परेशान होगी तो मेरे कंधे पे,
सर रख कर रो लेना।
मैं परेशान हुआ तो तेरी गोद में,
सर रख कर सो लूंगा।

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20 MAY 2021 AT 11:57

बोलने वाले बहुत कुछ बोल गए
बोलने में हम भी अच्छे थे
फिर ना जाने चुप क्यूं रह गए
लगता है हम बहुत पीछे रह गए
ना जाने हमने अपने चारों तरफ दीवारें क्यूं बना दी
जिनके बाहर हम भी एक दुनिया बना सकते थे
लेकिन हमने उन दीवारों के बाहर कभी झांका ही नहीं
लोग जिंदगी जीने में मस्त थे
हम खुदमे ही व्यस्त रह गए
लगता है हम बहुत पीछे रह गए
कभी लगता है मेरे अलावा यहां सब सुलझ गए
ना जाने फिर मैं ही क्यूं सच , गलत के फेर में उलझा रह गया
मुझे लोग समझदार समझते है
इसीलिए तो देखो आज अकेला रह गया
लोगों ने अपने सुख दुख में सबको साथ लिया
और हमने सब खूदसे ही बाट लिया
लोगों के तलाश भी पूरी हो गई,
मुझे वक्त पर भरोसा था, लो मेरे घड़ी भी खो गई

Hemant kabdwal




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5 APR 2021 AT 16:42

पेन खत्म हो गई तो पता चला
पेंसिल भी अच्छा लिखती है
मेरे अंधेरे कमरे में किसी ने लाईट क्या जलाई
तो पता चला अंधेरे में रोशनी भी अच्छा दिखती है

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9 FEB 2021 AT 20:54

गलत मंजिल पे पहुंचे तो रास्ते को दोष दे दिया।
रास्ते का काम तुम्हें सिर्फ मंजिल पे पहुंचाना था
और उसने पहुंचा दिया।
गलती तुम्हारी थी ,तुमने ही गलत मंजिल पे जाने वाले
रास्ते को चुन लिया ।

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26 DEC 2020 AT 19:31

सपनों का शहर बसाने चले है हकीकत की दुनिया छोड़ कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
कमरे की दीवारों में कोई जान भी डाल देना मेरी आदत थी घर की दीवारों से बात करने की
कौन अपना है कौन पराया मुझे ये भी बतादेना
मेरी आदत थी गैरों के साथ चलने की
दीये की ओर चले है सूरज को छोड़ कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
कोई मुझे बात करना भी सीखा देना मेरी आदत थी चुप रहने की
झूठ कब बोलना है किससे बोलना है मुझे ये भी बता देना
मेरी आदत थी सच कहने की
चाबी ढूढने चले है ताला तोड़कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
याद दिला देना कोई मुझे ताला लगाने की
मेरी आदत थी हर किसी को अंदर बुलाने की
जहां से चलना सीखा चले है वहा से दौड़कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
रास्ते के पत्थरों को भी हटा देना
मेरी आदत थी ठोकर खाने की
किसी छोटे रास्ते के बारे में भी मुझे बता देना
मेरी आदत थी जल्दी थक जाने की
खिलौना बनने चले है खिलौना तोड़कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़कर
Hemant kabdwal


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8 DEC 2020 AT 22:31

हमें वक्त से आगे चलने की आदत थी
उसे हर जगह ठहरने की आदत थी
हम चलते चलते कही खो गए
उन्होंने कुछ देर इंतजार किया, फिर वो भी सो गए

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1 DEC 2020 AT 22:05

किस्मत की बात ना ही करना
मैं अगर तारे को भी देख लू तो वो भी टूट जाता है

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29 OCT 2020 AT 16:55

हम भी खुली किताब ही है
लेकिन उसमें जो शब्द लिखे है
उन्हें सीखने में तुम्हारी
पूरी जिंदगी निकल जायेगी

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20 OCT 2020 AT 22:43

अगर जल्दी पूरा हो जाए तो वो सफर कैसा
और जो देर से हो वो असर कैसा
जो देर तक रुक जाए वो मेंहमान कैसा
और जहाँ चैन ना हो वो समसान कैसा
जहा भीड़ ना हो वो मेला कैसा
और जिसके साथ तू है वो अकेला कैसा
जो जल्दी पूरा हो जाए वो सपना कैसा
और जो देर से मिले फिर वो अपना कैसा
जो सब कुछ समझ गया वो परेशान कैसा
और जिसको तुजपर भरोसा हो फिर वो हैरान कैसा
जिसे सब कुछ मिल गया वो इंसान कैसा
और जो कुछ ना दे सके फिर वो भगवान कैसा


Hemant kabdwal









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17 OCT 2020 AT 8:11

ये जिंदगी का पेपर है साहब
यहाँ सिर्फ सही लिखने के नंबर मिलते है
लेकिन थोड़ा देर से

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