तू परेशान होगी तो मेरे कंधे पे,
सर रख कर रो लेना।
मैं परेशान हुआ तो तेरी गोद में,
सर रख कर सो लूंगा।
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ये किस कल से... read more
बोलने वाले बहुत कुछ बोल गए
बोलने में हम भी अच्छे थे
फिर ना जाने चुप क्यूं रह गए
लगता है हम बहुत पीछे रह गए
ना जाने हमने अपने चारों तरफ दीवारें क्यूं बना दी
जिनके बाहर हम भी एक दुनिया बना सकते थे
लेकिन हमने उन दीवारों के बाहर कभी झांका ही नहीं
लोग जिंदगी जीने में मस्त थे
हम खुदमे ही व्यस्त रह गए
लगता है हम बहुत पीछे रह गए
कभी लगता है मेरे अलावा यहां सब सुलझ गए
ना जाने फिर मैं ही क्यूं सच , गलत के फेर में उलझा रह गया
मुझे लोग समझदार समझते है
इसीलिए तो देखो आज अकेला रह गया
लोगों ने अपने सुख दुख में सबको साथ लिया
और हमने सब खूदसे ही बाट लिया
लोगों के तलाश भी पूरी हो गई,
मुझे वक्त पर भरोसा था, लो मेरे घड़ी भी खो गई
Hemant kabdwal
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पेन खत्म हो गई तो पता चला
पेंसिल भी अच्छा लिखती है
मेरे अंधेरे कमरे में किसी ने लाईट क्या जलाई
तो पता चला अंधेरे में रोशनी भी अच्छा दिखती है
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गलत मंजिल पे पहुंचे तो रास्ते को दोष दे दिया।
रास्ते का काम तुम्हें सिर्फ मंजिल पे पहुंचाना था
और उसने पहुंचा दिया।
गलती तुम्हारी थी ,तुमने ही गलत मंजिल पे जाने वाले
रास्ते को चुन लिया ।-
सपनों का शहर बसाने चले है हकीकत की दुनिया छोड़ कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
कमरे की दीवारों में कोई जान भी डाल देना मेरी आदत थी घर की दीवारों से बात करने की
कौन अपना है कौन पराया मुझे ये भी बतादेना
मेरी आदत थी गैरों के साथ चलने की
दीये की ओर चले है सूरज को छोड़ कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
कोई मुझे बात करना भी सीखा देना मेरी आदत थी चुप रहने की
झूठ कब बोलना है किससे बोलना है मुझे ये भी बता देना
मेरी आदत थी सच कहने की
चाबी ढूढने चले है ताला तोड़कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
याद दिला देना कोई मुझे ताला लगाने की
मेरी आदत थी हर किसी को अंदर बुलाने की
जहां से चलना सीखा चले है वहा से दौड़कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़ कर
रास्ते के पत्थरों को भी हटा देना
मेरी आदत थी ठोकर खाने की
किसी छोटे रास्ते के बारे में भी मुझे बता देना
मेरी आदत थी जल्दी थक जाने की
खिलौना बनने चले है खिलौना तोड़कर
और किराए के मकान में जाना है घर छोड़कर
Hemant kabdwal
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हमें वक्त से आगे चलने की आदत थी
उसे हर जगह ठहरने की आदत थी
हम चलते चलते कही खो गए
उन्होंने कुछ देर इंतजार किया, फिर वो भी सो गए-
किस्मत की बात ना ही करना
मैं अगर तारे को भी देख लू तो वो भी टूट जाता है
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हम भी खुली किताब ही है
लेकिन उसमें जो शब्द लिखे है
उन्हें सीखने में तुम्हारी
पूरी जिंदगी निकल जायेगी
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अगर जल्दी पूरा हो जाए तो वो सफर कैसा
और जो देर से हो वो असर कैसा
जो देर तक रुक जाए वो मेंहमान कैसा
और जहाँ चैन ना हो वो समसान कैसा
जहा भीड़ ना हो वो मेला कैसा
और जिसके साथ तू है वो अकेला कैसा
जो जल्दी पूरा हो जाए वो सपना कैसा
और जो देर से मिले फिर वो अपना कैसा
जो सब कुछ समझ गया वो परेशान कैसा
और जिसको तुजपर भरोसा हो फिर वो हैरान कैसा
जिसे सब कुछ मिल गया वो इंसान कैसा
और जो कुछ ना दे सके फिर वो भगवान कैसा
Hemant kabdwal
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ये जिंदगी का पेपर है साहब
यहाँ सिर्फ सही लिखने के नंबर मिलते है
लेकिन थोड़ा देर से-