बोलने वाले बहुत कुछ बोल गए
बोलने में हम भी अच्छे थे
फिर ना जाने चुप क्यूं रह गए
लगता है हम बहुत पीछे रह गए
ना जाने हमने अपने चारों तरफ दीवारें क्यूं बना दी
जिनके बाहर हम भी एक दुनिया बना सकते थे
लेकिन हमने उन दीवारों के बाहर कभी झांका ही नहीं
लोग जिंदगी जीने में मस्त थे
हम खुदमे ही व्यस्त रह गए
लगता है हम बहुत पीछे रह गए
कभी लगता है मेरे अलावा यहां सब सुलझ गए
ना जाने फिर मैं ही क्यूं सच , गलत के फेर में उलझा रह गया
मुझे लोग समझदार समझते है
इसीलिए तो देखो आज अकेला रह गया
लोगों ने अपने सुख दुख में सबको साथ लिया
और हमने सब खूदसे ही बाट लिया
लोगों के तलाश भी पूरी हो गई,
मुझे वक्त पर भरोसा था, लो मेरे घड़ी भी खो गई
Hemant kabdwal
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