पंक्षी कहता अपनी कहानी ,मेरे शब्दो की जुबानी..
पिंजरे मे ना होता तो आज मैं जिन्दा होता?
पिंजरे मे रहकर ना मैने उड़ना सीखा ,
दुश्मनो से ना मैने बचना सीखा ,
पिंजरे ने ली मेरी कुर्बानी,
पंक्षी कहता अपनी कहानी ,मेरे शब्दो की जुबानी....
एक दिन मैं उड़ गया पिंजरा खोलकर,
सारे बन्धनों को पीछे छोड़कर,
मेरी मौत कर रही थीं मेरा इन्तजार,
मेरे देह को झपटने के लिए दुश्मन थे तैयार,
जंगल की परिस्थितियाँ थीं मेरे स्वभाव से भिन्न,
मैं तो रहा पिंजरे में मालिको के अधीन ,
मैने सीखा नहीं जंगल में रहना,
मैनें सीखा नहीं दुश्मनों से लड़ना,
मैनें समझा जिसको अपना,मुझे खाने का उनका था सपना,
पिंजरे से तो हो गया आजाद, जिन्दगीं की जंग गया मैं हार,
दुश्मनो के लिए बन गया भुख का आहार,
पिंजरे ने ली मेरी कुर्बानी,
पंक्षी कहता मेरी कहानी, मेरे शब्दो की जुबानी....
मैनें जब किया नहीं कोई गुनाह,
मुझे मिला क्यों पिंजरे में पनाह,
मुझे बन्द रखने में मिलता हैं इनको मजा,
इस गुनाह की क्यों नहीं मिलती है इनको सजा,
एक ने बेचा ,एक ने खरीदा इनकी मर्जी,
किसी ने सुनी नहीं मेरे मन की अर्जी,
सबने चलाई सिर्फ अपनी मनमर्जी,
मुझे बेचा या खरीदा नहीं जाता, तो आज मैं जिन्दा होता,
पिंजरे ने ली मेरी कुर्बानी,
पंक्षी कहता अपनी कहानी, मेरे शब्दो की जुबानी...
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