Reena Vashisth  
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Joined 11 November 2017


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Joined 11 November 2017
27 FEB AT 1:13

कहता नहीं पर समेटे है गाथा
अश्रु जो आंख में है भर आता

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21 SEP 2022 AT 23:01

प्रेम का यह गीत मैंने
मीत, तुमसे ही है पाया....

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8 MAY 2022 AT 13:06

आँचल में वो अपने चाँद बुलाती है,
परियों को मेरी सहेली बताती है।
कोसों दूर हूँ, नींद नहीं आती जब,
माँ, माँ नही रहती, जादूगर हो जाती है।

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30 NOV 2021 AT 18:23

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20 NOV 2021 AT 21:36

तुमको सोचूँ, तुमको लिखूं,
दिल मेरा बस ये करता है,
ख़्वाब में तुमको यूँ देखे है
पल-पल आहें भरता है...

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22 OCT 2021 AT 1:28

पता चल रहा है क्या हो रहा है तुम्हारे साथ?

नहीं, बस धारा के साथ बह रही हूँ...

हमेशा एक दिशा भी तो सही नहीं होती...

हमेशा विपरीत बहने की हिम्मत भी तो नहीं होती....

धारा में बहते हुए भी अपनी दिशा ढूँढी जा सकती है...

मैं कोशिश करुँगी इस धारा में अपनी धारा खोजने की....

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25 SEP 2021 AT 22:51

कोई इच्छा है आज?

हाँ, अपने से दूर हुए उन लोगों को साथ देखना जिनके लिए मैं खास हूँ....

बस, इतनी सी बात... वो लोग तो हमेशा तुम्हारे आस पास रहते है... तुम्हारा ध्यान रखते है... बस कभी महसूस करना अचानक से कोई बिगड़ता काम बनाता दिखने लगे तो....

काश, ऐसा ही होता हो... हम सभी के अपने करीब रहते हो.... जो दुनिया से दूर है वो आसमान से देखते हो और जो मन से दूर हो उनके मन तक हमारी आवाज़ पहुँचती हो.....

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10 SEP 2021 AT 1:21

तुम मेरी आँखों में आ कर के कुछ यूँ ही बस जाते हो,
जैसे कलियों के खिलने से पहले भँवरें रस पाते हो।

आँखें मेरी बातूनी बन जाये तेरे होने भर से,
तुम ना आने की यह कैसी झूठी कसमें यूँ खाते हो।

रोती मेरी आँखे थी, फिर गीत जुबाँ पर तुम ही लाये,
क्या अब भी नगमें तुम इन गीली आँखों से ही गाते हो।

कि इक जमाने से मैंने तुमको देखा ना जी भर के है,
फिर कैसे आँखों के दरवाजों से सपनों में आते हो।

कितनी सारी बातें होती है कहने को तुम से जानां,
हो जाती सब ख्वाहिश पूरी जब आँखों को पढ जाते हो।

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5 SEP 2021 AT 0:04

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17 AUG 2021 AT 22:22

विप्लव गायन

-बालकृष्ण शर्मा नवीन

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