ज़िन्दगी ख़्वाइशों का समुंदर
... हैं ख़्वाब सारे जहाँ के,
मिले जो ना हमें... न जाने
...वो किनारे कहाँ थे,
बस... कश्ती सा सफऱ है
ना यहाँ के... ना हम वहाँ के!-
आँखो में समन्दर लिए किनारे कि तलाश में हूँ,
वक्त को वक्त देकर, वक्त पाने कि आस में हूँ।-
...कश्तियों सा सफ़र है मन में
पऱ किनारों में रहना पड़ता है
जब "जी" करता है साग़र सा थमने को
तब नदियों सा बहना पड़ता है,
उफ़्फ़... असहाय, जल सी "ज़िन्दगी"
...कितना कुछ सहना पड़ता है!!-
होकर अपने ही पराऐ से जीने लगे हैं
सुना है आजकल किनारे ही पानी पीने लगे हैं
सिलाई मशीन रखी,
वक्त का धागा डाला
और हम भी गम सीने लगे हैं
सुना है आजकल किनारे ही पानी पीने लगे हैं
वक्त गुजर गया अब तू वो सब याद ना कर
संभल जा जरा अब यूं खुद को बर्बाद ना कर
ऐ दिल जीने दे अगर वो जीने लगे हैं
सुना है आजकल किनारे ही पानी पीने लगे हैं-
फ़लक पर ख़ुशी के सितारे नहीं अब
जो चमके थे पहले हमारे नहीं अब
है आँखों में मेरे भी इश्क़-ए-समंदर
मोहब्बत को फिर भी किनारे नहीं अब
ख़ुदा ने क़यामत सा तुमको बनाया
करें क्या रहे हम तुम्हारे नहीं अब
मैं महका था उस दिन जो देखा था तुमको
क्या आँखों में वैसे नज़ारे नहीं अब
मैं तन्हा नहीं हूँ हुआ हूँ मुसाफ़िर
वफ़ा के ये रस्ते भी प्यारे नहीं अब
कभी तो कहो तुम की 'आरिफ़' तुम्हारा
कि मिलते हैं तुमसे सहारे नहीं अब-
ये चाहतों का सिला हैं
किसी को ज्यादा किसी को कम मिला हैं!
तुम बने रहो आँखो का काजल
इन आँखो को तो बस अश्क मिला है!
खुशनसीबी हैं तुम्हारी जो तुम्हे खुशी
किसी और को गम मिला है!
जश्न बनाओ, दुआये तुम्हारी हुई कबूल
इस ज़ख्मी परिंदे को फिर तीर मिला हैं!
यूं सूकून नहीं किनारो पर, छलके जब अपने नीर
तब समझ आया इनको भी बहुत पीर मिला है !
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शाम के साहिलों पर
शाम के साहिलों पर खड़े,
लहरों से पूछो,
कितनी यादें छिपाए रखी है❓
कारण दुसरे किनारे से बिछड़न,
प्रेम की राहों में कांटे बिछाए रखी है।
खंडहर हुए,
उस कश्ती के सिरे पर
किसी के आंसुओ के निशां हैं क्या❓
और उसकी चर्चराहट में पायल की गुंजन❓
कितने राज़ दबाए रखी है❓
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दिल के किनारें में ठहरा है जो
वो तेरा ख़्वाब है
रुकती नहीं रातों में भी
जब खुलती मेरी आंख है
थकती नहीं राहों में भी जो
वो तेरा ख़्वाब है
छोड़ दूं कैसे पीछे
जो हर पल मेरे साथ है
भूल जाऊं कैसे उस ख्वाबों को
जो तेरे जाने के बाद भी
मेरे दर्द के साथ है
वो तेरा ख़्वाब है-