प्रेम में "ईश्वर" बनने की चाह रखने वाले प्रेमी और प्रेमिकाएं अपने हिस्से के प्रेम के साथ रह जाते हैं अकेले!
उन सभी को प्रेम से कोई उम्मीद नहीं रहती! वो प्रेम में होते हुऐ विरक्त होकर जीवन से कुछ नहीं मांगते।
ठीक वैसे, जैसे मंदिर के गर्भगृह में बैठे ईश्वर, जिसकी कपाट दो बार खोली और बंद की जाती है। पर उन्हें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस दौरान बाहर से कौन आया और हाथ जोड़ कर गया।— % &
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