गोलाई से भरे उसके नितम्बों को जो उठाया मैंने
उठाकर उठाकर उसे जन्नत की सैर करवाता रहा
हो गए थे हम दोनों ही पसीने से तरबतर रात भर
अलग अलग कलाओं से मैं रात वार करता रहा-
अगर गुनाह है तो हो जाने दो
हुस्न और जवानी का मिलन होने दो..
तुम जहर हो तो पी लेने दो
मरने के पहले कुछ देर
जन्नत का मजा लेने दो..
पाप और पुण्य से दूर
प्रणय करने दो
मुझे नया कामसूत्र रचने दो.!-
तुम मिलो तो सही तसल्ली मिल जायेगी
इन दूरियों को भी कुछ सजा मिल जायेगी-
दिनाँक 07/05/2020 से दिनाँक 15/05/2020 तक मैंने वात्सायन कामसूत्र पुस्तक पढ़ी, चूँकि ये बात अब बहुत लोगो को अटपटी लगेगी कि मैं आपको ये क्यों बता रहा हूँ, किन्तु आज आपसे खुलकर बात करने की हिम्मत हुई...!
(अनुशीर्षक में पढ़े)-
जैसे रोटी कपड़ा मकान
मूलभूत आवश्यकता है
उससे भी महत्वपूर्ण आवश्यकता
जो जीवनभूत है
दैहिक आवश्यकता है
वह है संभोग..!
जो प्रत्येक जीव का
जीवनगत अधिकार है.!
सनातन संस्कृति ने उसका
भी सूत्र दिया जो
कामसूत्र है..!-
कामसूत्र के बंध में
काम करे है भोग
मानव सोचें भोगे हम
है कैसा संजोग-
उसके होंठों की शबनमी बूंदें जो चखी मैंने
उसकी खुश्बू से मेरी सांसें महकती रही
चूमता रहा मैं उसके रग रग हर अंग को
जो छुआ उभारों को वो बहकती रही
मुद्दत बाद ये हसीन रात आई थी हमारे लिए
सुहानी रात में भी जिस्मों की आग सुलगती रही
चूमते चूमते जांघों के बीच का फासला तय किया
छुआ जो होंठों से आग वहां भी दहकती रही
रात भर आगोश में रहे एक दूजे के हम
छुअन से एक दूजे की हसरतें और बढ़ती रही
कभी पलंग कभी सोफ़ा कभी मेज़ कभी बाथरूम
घर के कोने कोने में वो साथ मेरा देती रही
आखिर में दोनों तर ब तर भीग गए पसीने से
तेज़ वार के जोश की हर बूंद अंदर स्खलित होती रही-
सतयुग मे लोग इतने संस्कारी थे कि " कामसूत्र " और " कोक शास्त्र " तक लिख डाला। वाकई बडे संस्कारी थे..!!
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मेरे लेखनी को तुम "साहित्य" का दर्जा मत देना,
मेरा समाज आजकल "कामसूत्र" ज्यादा पढ़ रहा है।-
तुम्हारा गाढ़ा गोरा रंग पर नीले रंग का वस्त्र बेहद आकर्षित करता है मुझे --
उसपर तुम्हारा सजीला स्तन मन मोह लेता मेरा--
ऐसा लगता जैसे मै तुझ मे और तू मुझ मे समा कर अर्धनारीश्वर बन जाऊं!---
कहो प्रिय क्या बनोगी मेरी अर्ध??
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