पास आकर मेरे यूंही मुस्कुराया ना करो
लगेगा फिर इल्ज़ाम मुझपर ही कि
रात भर मैने तुम्हें सोने ना दिया
तड़प रहा है अब तो मेरा ज़र्रा ज़र्रा
फिर ना कहना कि लंबाई को
गहराई में समाने ना दिया-
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गोलाई से भरे उसके नितम्बों को जो उठाया मैंने
उठाकर उठाकर उसे जन्नत की सैर करवाता रहा
हो गए थे हम दोनों ही पसीने से तरबतर रात भर
अलग अलग कलाओं से मैं रात वार करता रहा-
रुको जान.. रात भी थोड़ी ढलने दो
आसमां के चांद को भी निकलने दो
सब्र कर लो शमा के बुझ जाने तक
बेताब अरमानों को और मचलने दो-
मुद्दत से आज फिर रुक जाओ
आज अपनी इस रात को रंगीन बनाने दो
बस आज रात मेरे पास ठहर जाओ ना
इस बेताब दिल को गुस्ताखियां दोहराने दो-
सीने से आंचल को ढलकने दो
बूंदे शबनम की जिस्म से फिसलने दो
इंतेहा हो जाए मदहोशियों की भी
उफ्फ अरमानों को भी मचलने दो-
खुदा से भी बढ़कर माना है मैंने तुझे
जुदा है तू हर किसी से ज़माने में
इसलिए हर दुआ में मांगा है मैंने तुझे-
होश में तो हम नहीं तुम्हें ऐसे देखकर
खो जाओगे खुद में ही ऐसी हम तारीफ़ करेंगे
सब कुछ तो नाम कर दिया हमने तुम्हारे
अब इस नाचीज़ जान का हम क्या करेंगे-
मेरी खुशियों का आशियां तुझमें बसा रखा है
अब खुशियां दे या गम दे बस तुझपे छोड़ रखा है
ढूंढता हूं हर जगह अब सिर्फ़ निशां तेरे
इस कद्र तुझे मैंने आंखों में अपने सजा रखा है-
तेरे कामुक छिद्रों को देखकर
मेरा लंबवत कठोर बन गया
लगा जो प्रवेश करने छिद्र में थूक लगाकर
मेरा लंबवत और भी तन गया-