पास आकर मेरे यूंही मुस्कुराया ना करो लगेगा फिर इल्ज़ाम मुझपर ही कि रात भर मैने तुम्हें सोने ना दिया तड़प रहा है अब तो मेरा ज़र्रा ज़र्रा फिर ना कहना कि लंबाई को गहराई में समाने ना दिया
गोलाई से भरे उसके नितम्बों को जो उठाया मैंने उठाकर उठाकर उसे जन्नत की सैर करवाता रहा हो गए थे हम दोनों ही पसीने से तरबतर रात भर अलग अलग कलाओं से मैं रात वार करता रहा
मेरी खुशियों का आशियां तुझमें बसा रखा है अब खुशियां दे या गम दे बस तुझपे छोड़ रखा है ढूंढता हूं हर जगह अब सिर्फ़ निशां तेरे इस कद्र तुझे मैंने आंखों में अपने सजा रखा है