मुसाफिर हैं ये कहकर पनाह माँगी थी उन्होंने
पर ना जाने कब दिल पर ही कब्जा कर लिया उन्होंने..
अब काबिज हैं वो इस "दिल की जमीं पर"
कि कुछ इस तरह हमें खुद का ही ना छोड़ा उन्होंने....
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तुम्हे अपने दिल में बसाया था मैंने ।
तेरे साथ जीने का सपना सजाया था मैंने।।
मेरी सांसों में, मेरी यादों में तुम हो।
मेरी हर एक बातों में तुम हो।।
मैंने तो तुझपर अपनी मुहब्बत बरसाया था।
और तूने मुझे पल पल यादों में तरसाया था।।
मुझे तुम यू ना भुला पाओगे।
अपनी हर एक सांसो में मुझे ही घुला पाओगे।।-
अदावतें कुछ इस तरह हुईं क़ाबिज़
मेरी ख़ामोशियांं भी लावारिस हो गईं
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रूह में शामिल मेरी है बस तू .....
जिस्म की सांसो- धड़कन में है तू ......
कोई सूरत हाल नहीं है,जुदा जो तुमसे हो जाऊं
बदन के सारे रोम रोम में,हरसू काबिज़ तू .....
दिल से तुमको भुला नापाऊं,तेरी फुरकत कैसे छुपाऊं मेरी यादों में,फरियादों में है तू......
कोई भी गलती हो जाए,गुस्ताखी दिल से हो जाए
बात बात पर गुस्साहोना,रूठा करना तू .......
तुम रूठो मैं तुम्हें मनाऊं,करके सारे जतन रिझाऊं
मेरे लिए हर हाल में लाज़िम तू ......
रूह में शामिल है मेरी बस तू ......-
जब उसकी यादें मेरी रूह पर काबिज हैं
उसका मेरे ख़्वाबों में आना भी वाजिब है।-
काबिज़ ही ना हुई तू मुझमें,
अरे.......
यह तो होना ही था,
फिर भी तुझे खोना नही था,
खोना नही था..!
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हर शै की हस्ती जरूरी नहीँ है दुनियाँ में
बहुत सी बातें सिर्फ यकीन पर ही चलती है,
प्यार हो,विश्वास हो या हो खुदा
वजूद दिखता नहीं पर काबिज़ हैं ये दुनियाँ में....-
क्या कोई धागा है....??
मेरे तुम्हारे बीच
तुम इतने ज़रूरी नहीं मेरे लिए की ,जीने पर बन आये पर तुम नही हो
ये सोच कर एक लम्हें को
सारी दुनिया रीती सी लगती है
तुम न हो कर होते हो,
जैसे तुम्हारा कोई invisible clone हो....
सुनो.....
जहाँ कहीं भी तुम हो....??
तुम जीत गए हो,
मेरे जेहन पर काबिज़ हो तुम
नहीं हो कहीं पर
मेरे हर ख़्याल में शामिल हो तुम...!!
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कहते हो मेरे हो,मगर मेरे नहीं हो तुम
कोई नाम न रिश्ते का,हो ऐसे कैसे मेरे तुम,
मेरी हर सोच पर तो तुम्हारी यादें हैं काबिज़
मेरे ख़्वाबों में हो तुम, मगर रातों में नहीं तुम,
मेरी हर चाह तुमसे है,निधि की हर बात तुमसे है
मेरे जीवन में हो हरपल ,मगर मेरे नहीं हो तुम,
सुबह जब भी आती है,नई उम्मीद लाती है
तन्हाई शामों की कहती,मगर मेरे नहीं हो तुम...
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तुझे ढूंढते हैं हर्फ़ों में
तू मिलता ही नहीं
तूने काबिज़ किया यूँ
गिरफ्त से
दिल निकलता ही नहीं
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