इतना मासूम है कातिल मेरा,
कि बार बार क़त्ल हो जाने को जी करता है।-
'क़त्ल' कर के 'अभि' मेरा वो 'संगदिल' बेरुख
'क़ातिल' भी कमबख्त खून के आँसूं रोया होगा।1।
मेरे गुज़र जाने के बाद जरूर हुआ होगा उसे इस बात
का एहसास कि उसने अनजाने में क्या खोया होगा।2।
'करवट' बदल-बदल कर ही बीती होगी ए दोस्त!
रात उस हरजाई की, उस रात वो कहाँ सोया होगा।3।
'मिटते' ही नही होंगें 'खून' के 'निशान' मेरे, बड़ी ही
'मशक्कत' के बाद उसने उन धब्बों को धोया होगा।4।
रुकता नही होगा उसकी आँखों का पानी 'अभि' यकीनन
उसने अपने तकियों को कई दफ़ा भिंगोया होगा।5।
जताता नहीं होगा वो 'हाल ए दिल अपना' लेकिन कमरे
के कोने में मेरे होने के एहसास को उसने संजोया होगा।6।
जानता है वो कि जा चुका हूँ मैं लेकिन फ़िर किसी रोज
भूल से ही मेरे लौट आने के सवाल को पिरोया होगा।7।
दुःखता होगा 'दिल' उस 'पत्थर' का भी जब आकर
मजार पर मेरे उसे मेरे नाम के साथ जोड़ा गया होगा।8।
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यहां कोई क़ातिल नहीं है मेरी मौत का
बस कायदों ने गला घोंटा हर शौक का 💔-
आँखों में नशा ही नहीं होठों पे जाम भी चाहिएं
ऐ-खुदा यार भी मुझे क़ातिल निग़ाहों वाला चाहिएं
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"तु जो ना होता तो ,
कैसे बंया करता अपना हाले दिल...
दबी रह जाती अल्फाज सीने में,
और मैं ही होता उसका कातिल...
अब जो तु मिल गया है,
मिल जायेंगे विचारों को अपनी मंजिल...
गर तेरा हो साथ तो,
दुर हो जायेंगी हर मुश्किल...
मेरी भावनाएं ,
जब कर लेंगी तेरे शब्दों को हासिल...
बढ जायेगी शोहरत मेरी ,
जब तु सिने से लग कर जायेगा महफ़िल
पुछेंगें जब लोग मुझे ,
तु सुनायेगा मेरा हाले दिल"...
✒ राजेन्द्र राठौर ✒
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झुकी हुई नजरों से इजहार-ऐ-इश्क हो रहा था
कैसे बचाते दिल को जब कातिल से ही इश्क हो रहा था-
जब-जब,
क़ातिल निगाहों में काजल रगंते देखा है
तब-तब,
दरिया को भी साहिल पर डूबते देखा है...-
उस बज़्म में दर्द-ए-दिल की दुआ क्या है,
जहां क़ातिल ख़ुद पूछें की हुआ क्या है ?-