QUOTES ON #कलयुगी_मानव

#कलयुगी_मानव quotes

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11 DEC 2021 AT 20:20

कलयुगी मानव
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मानवता की सुगन्ध,
अब नहीं आती,लगता है
कलयुगी भौरे,उसे लेकर उड़ गए।
छोड़ गए,
मुरझाए पुष्प सी देह
और अहंकार के कांटे।
कलयुगी मानव की व्याख्या,
स्याही का दुरुपयोग होगा।
कितने अपशब्द लिखे जाएँ
पन्नों की छाती पर।
आज का मनुष्य,अपनी हीनता को,
मानता है, प्रकृति का परिवर्तन।
किन्तु यह परिवर्तन, प्रलय का है,
जिसमें कलम वही है,
लिखावट बदल चुकी है।
पहले सत्य का राम,
बुराई के रावण का वध करता था,
किन्तु अब,प्रतिक्षा करती हैं,
बुराइयाँ, दशहरे का
और हजारों रावण मिलकर,
एक रावण का पुतला जलाते हैं।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ

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13 JUN 2020 AT 21:13

कपाट के पीछे कपट छिपाए,
ताक लगाए बैठे हैं ।
है कलयुग, यहां अपने ही
घात लगाए बैठे हैं।

मद में चूर हो, दाव पर
साख लगाए बैठे हैं।
है कलयुग, यहां रिश्तों को
राख़ बनाए बैठे हैं।

बसता ना ईश कहीं, मंदिर
लाख बनाए बैठे हैं।
है कलयुग, यहां झूठ को
पोशाक बनाए बैठे हैं।

अब फ़लक पर चांद नही, कृत्रिम
मेहताब बनाए बैठे हैं।
है कलयुग, यहां दिन को
रात बनाए बैठे हैं।

छाए हैं गम के बादल, आसुओं को ही
बरसात बनाए बैठे हैं।
है कलयुग, यहां सभी हृदय में अथाह
विषाद समाए बैठे हैं।

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5 AUG 2020 AT 11:48

दिल, दिमाग और रिश्ता-नाता जहां बिकता हैं
उस बाज़ार में इनसे ज्यादा महत्व पैसा रखता है

दो वक्त की रोटी को चुरा आया वो मंदिर से पैसा है
इंसानो ने शायद पूछा नहीं तु कितने दिनों से भूखा है

दफ्तर में बैठे-बैठे बिक गया उस अफ़सर का इमां है
गया नहीं अभी तक महंगी गाड़ी में बैठने का उसका गुमां है

बिक रहीं बेटियां दहेज़ और बिक रहा बेटा नौकरी के नाम पर है
क्योंकि हर घर बिक रहा रिश्ता अब पैसों के दाम पर है

कड़ी धूप में पसीना बहा कर वो रोज अगली तारीख पूछाता है
घर चलाने को वो महीने की पगार का बेसब्री से इंतजार करता है

धीरे-धीरे जिंदगी खो बैठा वो भागते-भागते पैसों को कमाते-कमाते हैं
क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि पैसा बनता भी है अब पैसों के दाम पर है।


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9 FEB 2021 AT 9:24

"कलुषित रिश्ते अब हो गए हैं, बस पवित्र हैं कहलाने को,
वो अग्नि परीक्षा जारी हैं, इकदूजे को आजमाने को।
कलयुग का इंसान तुला अपना अस्तित्व मिटाने को.....

चीरहरण होता है आज भी, पर कृष्ण नहीं है बचाने को,
भरे पड़े हैं रिश्ते नाते, बस झूठा प्यार जताने को।
कलयुग का इंसान तुला अपना अस्तित्व मिटाने को.....

पिता नहीं दशरथ सा कोई, विरह में प्राण लुटाने को,
अब राम सा नहीं बचा कोई, पिता का वचन निभाने को।
कलयुग का इंसान तुला अपना अस्तित्व मिटाने को.....

अब कहां मिलेगी वो सती, पति के प्राण लौटाने को,
सात फेरे और सात वचन, बस रस्म है एक निभाने को।
कलयुग का इंसान तुला अपना अस्तित्व मिटाने को....."

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रिश्तो में अब पहले जैसी मिठास कहांँ
कच्चे घरों की मिट्टी वाली खुशबू सा एहसास कहाँ
मर्यादा, संस्कार और समर्पण का एक दूजे के प्रति भाव कहाँ
बारिश की बूंदों को भी प्यासी धरती से मिलने की तड़पन अब कहाँ

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5 NOV 2019 AT 22:53

✴️ अच्छा सुनो ना...
ये कलयुग है, यहां लोग इंसानों से नहीं उसके वक्त से प्यार करते हैं।

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17 AUG 2020 AT 14:37

पहले लोग हृदय स्पर्शी वाणी बोलते थे
और आज के कलयुगी लोग ह्रदय को ही “स्पर्श” करना चाहते हैं।।

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6 MAY 2020 AT 15:32

जय श्री कृष्णा🙏🙏

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जब तक है मतलब तब तक ख़ास कहलाओगे
जब तक है प्यास तब तक गले लगाये जाओगे,

जब तक है प्यार तब ख़ूब नवाज़े जाओगे
इक वक़्त उसी शख्श से नकारे जाओगे,

अब इसके बाद ज़ेहन से भी बेदख़ल कर दिए जाओगे
कौन हो तुम कहां से हो किसलिए आए हो‌ पूछे जाओगे,

जिससे क़भी प्यार मिला सम्मान मिला दौलत का अंबार मिला
उसी से आज लुटे जाओगे बदनामी का अहसास पाओगे।
जय श्री श्याम

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3 MAY 2022 AT 12:52

झूठ में इतना वजन था कि,
उसके आगे सच ख़ामोशी से दब के मर गया,

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