कल सुबह का सूर्योदय
--------------------------
नहीं हुआ आज,
सूर्य का उदय,
दिखाई दे रही है,
अभी चाँद की परछाई ।
एहसास हो रहा है,
तारों के होने का ।
अभी चिड़ियों की चहचहाहट भी नहीं गूंजी।
काफी देर हो गया सवेरा हुए।
लगता है,
सूर्य आज उदास बैठा है,
सायद, वह जान चुका है,
होते ही सवेरा,
लगा लेंगे लोग,
मुखौटा सच्चाई का,
ईमानदारी का और निकल जायेंगे,
अपने-अपने काम पर।
मुखौटे की आड़ में करेंगे
चोरी, धोखा और बिछा देंगे
झूठ की चादर।
'देखता रहेगा सूरज,
उदय से अस्त तक
उसे पता है, शाम होते ही
लोग लौट आएँगे,
अपने घर के आँगन में,
हाँ फिर रख देंगे मुखौटे को,
किसी आलमारी में,
और करेंगे इंतजार,
कल सुबह के सूर्योदय का ।।-
मधुर स्मृतियाँ
----------------
छिपी होती है,मिठास
शहद की एक बून्द में,
जैसे हर रस के अंतःकरण में,
छिपा होता है,
श्रृंगार रस का माधुर्य।
यादें, मन में स्वतंत्र
विचरण करती हैं,
किन्तु वहीं,छिपी रहती हैं,
मन के किसी कोने में
मधुर स्मृतियाँ।
कभी आती हैं, एकान्त मन में
अनैच्छिक मुस्कान के साथ
एक अप्रतिम सुंगध
बिखेरती हुई।
एक सुकून की राग
गुनगुनाती हैं।
उन्हीं बातों को दोहराती हैं,
जो कभी हो चुकी है।
लहराती हैं, अपनी चंचलता को
और धड़कनों से गुजरती हुई
नेत्रों के समक्ष,
नृत्य करने लगती हैं,
मन में,
छिपी हुई
मधुर स्मृतियाँ।।
-
आत्मिक ज्ञान
--------------------
राम राज्य की कल्पना,
महाभारत का दौर।
चल रही 21वीं सदी,
कब मिलेगा ठौर?
यही प्रक्रिया अनवरत,
किस्मत करती खेल।
अंतर्यामी कैद पढ़े हैं,
कैसी तेरी जेल।
रचना तेरी अद्भुत है,
प्रकाशपुंज का तेल।
दूर-दराज के हैं हम सब,
जैसे जनम-जनम का मेल।।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ-
आज़ादी के अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर साहित्यिक काव्य संग्रह
"जीवन और यथार्थ"
का प्रकाशन एक यादगार के रूप में प्रकाशित होने जा रहा है,,आप सबके स्नेह और आशीर्वाद की आकांक्षी -🙏-
लक्ष्य
--------
संघर्ष वह अभ्यास हो,
नित नया प्रयास हो।
लक्ष्य जो अपने पास हो,
तो फिर क्यों मन उदास हो?
एकाग्र चित्त बोध से,
अनुभवों के शोध से
विचारों की चिंगारियाँ उठी
देखते ही देखते व्यवहार में बदल गई।
मिश्रण हवा का पाकर वह,
जुगनू बन चमक उठी।
वक्त बदलेगा,
सुबह से दोपहर ,रात ,फिर नई सुबह -
नित प्रतिदिन
यही वक्त का दौर।
यही जीवन का ठौर।।
- संकल्प अनुसंधान योगपथ-
।। पिता का व्यक्तित्व ।।
एक चरित्र,जो गहरा है
सागर की गहराई से।
बहुत ऊँचा है,
आकाश की ऊँचाई से।
अतुलनीय जिसका प्रेम,
वह पिता है,
हाँ वह सर्वश्रेष्ठ है,
इस संसार में।
पिता की दी हुई प्रेरणा,
पहुँचा देती है लक्ष्य तक
और सिखा देती है,
जीने की कला।
उनकी दी हुई शिक्षा,
जागृत कर देती है
दबी हुई दहाड़ को
और बना देती है शेर,
रणभूमि का।
नतमस्तक जैसे शब्द तुच्छ हो जाते हैं,
जब करना हो पिता का अभिवादन।
फड़फड़ाने लगते हैं पन्ने सुनकर,
कहानी उनके संघर्ष की।
उनके परिश्रम की कथा,
रोक देती है,
स्याही के स्पंदन को
और निःशब्द हो जाती है कलम,
जब लिखना हो व्यक्तित्व,
एक पिता का ।।-
आत्म जागरण
------------------
हे मानव मत बन तू कूड़े का ढेर,
इस जगमगाहट की जहां में।
आग की एक चिंगारी,
जला देगी सारी जहां को।
भीड़-भाड़ के महानगर में,
सुलगते देखा होगा- गुबार धुएँ का।
यही है प्रकृति का,
जन-जन को संदेश।
ज्ञानेन्द्रियों पर ध्यान केन्द्रण,
यही है निज मन विशेष।।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ
-
आस्था की भक्ति
-------------------
सौंप दो अपना सुख दुःख मुझको,
मैं ही इस काया में।
क्यों पड़े हो भ्रम में पगले,
मैं ही हूँ सब माया में।
सुबह से शाम तक जो भी करना,
मुझको मत तुम जाना भूल।
हर क्षण तुम आनन्दित होगे,
त्रिशूल मिटाए सारे शूल।।
- संकल्प अनुसंधान योगपथ
-
विचारों पर विचार
--------------------
विचारों का सागर अवचेतन के गर्भ में सुषुप्तावस्था में पलता है, जब मनुष्य मन ,कर्म और वाणी की साधना करता है तो संयोग और परिस्थिति के अनुरूप क्रमशः एक विचार बीज मन के चेतन पटल पर प्रज्ज्वलित होता है और उन्हीं विचार बीजों की निरंतरता से अवचेतन स्वतः विचारों की पुनरावृत्ति करता रहता है।
उसे मनुष्य अपनी या मानवीय आवश्यकता अनुरूप भावों का आवरण पहना देता है। शायद यही होगा विचारकों के विचारों के विचार का सारांश।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ-