विचारों पर विचार
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विचारों का सागर अवचेतन के गर्भ में सुषुप्तावस्था में पलता है, जब मनुष्य मन ,कर्म और वाणी की साधना करता है तो संयोग और परिस्थिति के अनुरूप क्रमशः एक विचार बीज मन के चेतन पटल पर प्रज्ज्वलित होता है और उन्हीं विचार बीजों की निरंतरता से अवचेतन स्वतः विचारों की पुनरावृत्ति करता रहता है।
उसे मनुष्य अपनी या मानवीय आवश्यकता अनुरूप भावों का आवरण पहना देता है। शायद यही होगा विचारकों के विचारों के विचार का सारांश।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ-
।।जीवनदायिनी।।
हे माँ तुम्हीं जीवनदायिनी,
मेरे लिए पूरा संसार हो तुम।
तुम्हारा कोमल सा हृदय,
तुममें पुष्प की नरमता
तुम स्नेह का सागर,
माँ मेरे जीवन का आधार हो तुम।
मैं काली रात का अंधेरा,
तो प्रातः का प्रकाश हो तुम।
ईश्वर से यही प्रार्थना है मेरी,
तुम कहीं रहो ,मुझे लगे मेरे पास हो तुम।।
मैं छोटी सी एक कली,
तो मुस्कुराता हुआ फूल हो तुम।
बुरी नज़र के लिए काला टीका,
विपत्तियों के समक्ष शूल हो तुम।
मैं रोता हुआ बादल,
तुम हँसती हुई धरती हो।
हमें पालती हो,सँवारती हो,
हमारे लिए जीती और हमारे लिए ही मरती हो ।।
मैं जल की एक बूँद,
तो लहराता हुआ समंदर हो तुम।
करुणा की मूर्ति बनकर,
हर नारी के अन्दर हो तुम।।
हे माँ मेरे होठों की मुस्कान हो तुम
घर में फैली खुशियों की पहचान हो तुम।
तुम सिर्फ एक माँ ही नहीं,
इस धरती का भगवान हो तुम।।-
वर्तमान समय में मानव मस्तिष्क का वैचारिक बहुमत व्यवहारिकता से बीमार है,यह असंतुलन मानव अस्तित्व के समाप्ति का संदेश किसी न किसी रूप में प्रकृति 2020 से ही कोरोना व सम्भावित तृतीय विश्वयुद्ध का आगाज़ सामने प्रत्यक्ष उदाहरण दिखा रही है, यदि आप इसमें स्वयं को शामिल होने की अनुभूति कर रहे हैं या वास्तविक दुनिया का सुख चाहते हैं तो सनातन संस्कृति की प्राचीन धरोहर वेद विज्ञान का शरण लेना ही होगा,अन्यथा मानव जीवन अवसर से हाथ धोना पड़ सकता है।
- संकल्प अनुसंधान योगपथ— % &-
अभिभावक की लेखनी
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घर का अभिभावक,
जो जिम्मेदारियों की इमारत है।
कवि है,
अपने परिवार की कविता का।
जिसे वह सँवारता है,
हजारों कठिनाइयों से।
अभिभावक का मार्गदर्शन,
उसकी लेखनी है।
उसका लक्ष्य है,
परिवार की स्वर्णिम रचना।
रचना का जयघोष,
कवि की उपलब्धि है।
इन्हीं उपलब्धियों के लिए,
कवि संघर्ष की कलम में,
अपने खून की स्याही को डुबो कर,
अपने जीवन को घीस देता है,
कलम की धार पर
और सिद्धियों के शब्दों को चुन कर,
हर्ष के सफ़ेद पन्ने पर,
मुस्कुराहट के साथ
लिखता है अद्वितीय कविता
अपने परिवार की।।
-संकल्प अनुसन्धान योगपथ— % &-
कलयुगी मानव
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मानवता की सुगन्ध,
अब नहीं आती,लगता है
कलयुगी भौरे,उसे लेकर उड़ गए।
छोड़ गए,
मुरझाए पुष्प सी देह
और अहंकार के कांटे।
कलयुगी मानव की व्याख्या,
स्याही का दुरुपयोग होगा।
कितने अपशब्द लिखे जाएँ
पन्नों की छाती पर।
आज का मनुष्य,अपनी हीनता को,
मानता है, प्रकृति का परिवर्तन।
किन्तु यह परिवर्तन, प्रलय का है,
जिसमें कलम वही है,
लिखावट बदल चुकी है।
पहले सत्य का राम,
बुराई के रावण का वध करता था,
किन्तु अब,प्रतिक्षा करती हैं,
बुराइयाँ, दशहरे का
और हजारों रावण मिलकर,
एक रावण का पुतला जलाते हैं।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ-
जीवन पर्यन्त की दीपावली
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हर साल,दीपावली आती है।
हर साल, वस्तुओं के धूल,
झाड़ दिए जाते हैं।
और बन्द कर दी जाती है,
दीवारों की दरारें।
हर साल ,रंगहीन वस्तुओं को,
रंगीन किया जाता है।
फिर जलते हैं असंख्य दीप
एक रात्रि के लिए,
एक साथ ,चारों ओर।
और कल के सूर्योदय के साथ,
होता है, दीपावली का समापन।
किन्तु इस बार, झाड़ कर देखना,
उस धूल को ,जो मन में जमी है
और बन्द कर देना,रिश्तों की दरारें।
रंगहीन भावनाओं को, रंगीन कर देना,
और जला देना एक दीया, प्रसन्नता के नाम।
एक दीपक प्रज्ज्वलित करना,
बुराइयों के चिता के लिए।
और मन के अंधकार में,
एक दीप ज्ञान का जलाना।
और देखना,
ये दीप, जीवन पर्यन्त जलते रहेंगे।
इस दीपावली के ,समापन का सूर्योदय,
कभी नहीं होगा।।
- संकल्प अनुसंधान योगपथ-
अदृश्य होती सभ्यता
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काट दी गई शाखाएँ,
मर्यादा की।
सभ्यता,जो घर की सदस्य थी,
वो चली गई बैठ कर,
पूर्वजों की अर्थी पर।
वाणी में जो शहद था,
वो परिवर्तित हो गया
मधुमक्खी के दंश में।
लोग ढल गए,
दिखावटी जिन्दगी में।
चेहरे पर सजावट के रंग ,
हर रोज लगाए गए,
जिससे झुलस गई परत
शालीनता की।
बस दिखती है,
अदृश्य होती सभ्यता।
यकीन मानो,
संस्कार गिर गए हैं,
ज़मीन पर।
जो पल्लू ,सिर पर इतराता था,
अब वो टकराता है,
पैरों से।।
- संकल्प अनुसन्धान योगपथ-