कुछ तो वास्ता रहा होगा मेरे शब्दों से
यूँ ही नहीं लोग बेनाम के इंतजार में रहते
अच्छे कर्मों के पीछे स्वागत भी होते हैं
यूँ ही नहीं टहनियों से उतरे फूल बाजार में रहते-
कभी ना कभी तोह निभाना पड़ता है,
जैसा बरताव दूसरों से करोगे,
वैसा ही भाव वापस लौट के आता है..
क्या गरीब क्या नसीब,
कर्म का सब लिखा जोखा होता है,
यमपुरी तोह कहानी है,
सब इसी जन्म में ही इंशान भुगतता है..-
ख़ूब दिया मशवराह ज़रा
इज़्तिराब में जाने क्या लिखा
कर्मों को अपने बस सँभाल ज़रा
ऊपरवाला ज़रूर देखेगा
इत्मिनान रख दुआ पर ज़रा
अभी ज़िंदगी बाक़ी और भी है
हिसाब में ना कोई उसके हेर फेर ज़रा
मिला जितना पहले कर शुक्रिया
उसको तो पूरा जी के आज़मा ज़रा-
तकदीर
अपनों में,सपनों में,मन्नतों में,कर्मों में,होती है।
लेकिन कभी हाथों की लकीरों में नहीं होती है।।
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मान लें के नहीं मिलता
तो...
कोई भी जन्म लेने से
पहले जरूर.. सोचता.. ।-
भाग्य अनुकूल हो या प्रतिकूल
मगर कर्मों का फल अवश्य मिलता है-
अपने अपने कर्मों का फल सबको मिलता है,
इस जन्म में ना सही, परभव में मिलता है।।
एक व्यक्ति वो है जो भगवान बनता है,
एक व्यक्ति वो है जो नरकों में पड़ता है।
दोनों ही मानव हैं,फिर क्या फर्क पड़ता है?
अच्छे बुरे कर्मों का खाता भी तो चलता है।
ईर्ष्या द्वेष अहं-की अग्नि सदा जलाती है,
क्षमा दया का रस शीतल हृदय बनाती है।
चंद्रकांता जैन
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