इस वक़्त में तुम्हारी
कमी पहले सी है
मेरे आँखों में ये नमीं
आज भी कुछ वैसी है
फर्क सिर्फ इतना है कि
इन होठों पर ये मुस्कान
उन बीते वक़्त की ख़ुशी
की है हा अब मुलाकातें
तो नहीं होती हमारी पर
आज भी इन बूंदों में तुम्हारी
छवि कुछ वैसी ही है...-
ताउम्र साथ निभाने की वो कसमे दो पल में टूट जाती है
मोहब्बत से बने इन रिश्तों में आखिर कमी कहाँ रह जाती है
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ना चाहते हुए भी दुनिया सब कुछ कह जाती है।
मरने की जरूरत कहा होती है आजकल,
इंसानी फितरत ही मौत दे जाती है।
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जब कोई कमी नहीं रखी
माँ ने बच्चो को पालने में
फिर क्यूँ कसर रखी बच्चो ने
बूढ़ी माँ को संभालने में??-
ईश्क़ को जताने में
कलेजा मुंह को आता है कह कर बताने में-
सहूलियतों की कमी में भी खुश है कोई
और समृद्ध को बहानो से ही फुर्सत नहीं ।-
जो फ़िरता 'ख्यालों' में , दिन रात अक्सर
'कमी' को क्या बख्शु , 'नमी' आँखो को-
तेरी कमी खलती हर रोज़ है...
फ़िर कईयों को तूने रख रखा था तेरी कमियाँ दूर करने को याद हो आता है !!-
शाम को जब अकेला बैठा था
तब अचानक ही हवा के झोंके के साथ वो अधूरापन आया
और कहा के चलो आज तुम्हे किसी चीज या इंसान की कमी से नही पर तुम्हे खुद से ही मिलवाता हु !-