वह वस़्ल मयस्सर ना हुई, जो किसी आंखों में देखा था
हर्फ़ो में ना उतरी, जो ख्यालों में सोचा था
वक्त से जाहिर हो ही गई, जंजीरे जो सदियों से बंधा था
एक पल आने पर हिम्मत छोड़ ही दी, लड़ना आखिर जो उसे अपनों से पड़ा था.
आफताब भरा है खुद में, कभी फूटेगा ही
बादल कब तक रोक लेंगे उजाले को, चीर कर कभी निकलेगा ही.
-