जो चला गया, जो बीत गया ...
लगा कुछ छूट गया ।
पर जो छूट गया और जो है कि , तुलना में ...
जो है , वो उससे भी बड़ा सिध्द हुआ ।-
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में आशा का होना ,
प्रायिकता का खेल दर्शाता है ।
जैसे...
उस आशा का वास्तविकता में पूरा होना ,
जीवन में उत्साह भर देता है ।
जबकि ...
उसी आशा का वास्तविकता में पूरा ना होना ,
जीवन का उत्साह घटा देता है ।-
दुनिया में हैं अनेक लोग ।
और उन अनेक लोगों की ,
इस दुनिया में भी है अनेक दुनिया ।
पर सिर्फ अपना देखो वाली, इस दुनिया में ...
सन्तानों की दुनिया में ही , सिमट जाती है माँ की दुनिया ।
सन्तानों की दुनिया ही होती है , हर माँ की दुनिया ।
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मन के उलझनों का सफ़र ,
कभी इधर तो कभी उधर ।
कभी जीवन की यथार्थता के करीब ,
तो कभी अंतर्मन के खुशी के करीब ।
मन सोचे ...चलूँ , किस डगर ?
इस डगर या उस डगर ...
चुनाव का यह द्वंद्व चलता रहे हर प्रहर ।
मन के उलझनों का सफ़र ,
कभी इधर तो कभी उधर ।-
तुमसे ही तुम्हारी खुशियाँ है ।
तुम्हारी खुशियों से ही तुम हो।
अगर कभी तुमने खुद को ,
सोच की अदृश्य सागर में खो दिया ।
तो समझ लेना की ...
तुमने अपने साथ अपनी खुशियाँ भी खो दी है।
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सबके मनों की एक दुविधा ,
क्या करें और क्या ना करें ?
हमारे शस्त्रों में ही लिखा , हर दुविधा का हल।
कि... क्या करें और क्या ना करें ।
श्री राम जी की कथा का सार ,
•रामायण• बतलाता है कि ...क्या करें।
कौरवों -पांडवों की गाथा का सार ,
•महाभारत• बतलाता है कि ...क्या ना करें ।
पर मन में बची एक और दुविधा ,
जीवन जिएं तो जिएं कैसे ?
इस दुविधा का अंत करे ,
श्री कृष्ण जी के मुख से निकली •गीता सार• ।
जो बतलाये जीवन कैसे जियें ।
जीवन की हर परेशानियों का अंत •गीता सार• ।
दिनचर्या में शामिल करें , गीता का पाठ प्रत्येक वार ।
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हिन्दी एक शब्द नहीं , इसमें समाहित है पूरी हिन्दी ।
कुछ स्वरों , कुछ व्यंजनों का मेल ।
रचा है पूरी दुनिया में अपना खेल ।
जन्म का पहला शब्द माँ , मृत्यु का आखिरी शब्द राम ।
जीवन के चक्र में भी शामिल है हमारी हिन्दी ।
बिना जाने , बिना सीखे ।
जुबान के साथ , दिलों में भी बसती है हमारी हिन्दी ।
शब्दों के तीखे बाण हो या शब्दों के नरम फूल ।
बिना औजार के भी , घाव और मरहम है हमारी हिन्दी।
प्रशासनिक पत्र हो या प्रेमियों का प्रेमपत्र ।
भावनाओं की भाषा है हमारी हिन्दी।
अतीत का ज्ञान हो या भविष्य की उड़ान ।
जीवन की पहचान है हमारी हिन्दी ।
कविताओं की तुकबंध कहो या, गीतों का लयबंध ।
संगठन की अपार क्षमता है हमारी हिन्दी ।
सरल कहो या कहो कठिन , सर्वप्रिय है हमारी हिन्दी।
जो लिखी जाती है वही ,बोली जाती है हमारी हिन्दी ।
हिन्दी की इन गहराइयों को ना जानने वालों के लिए ,
सागर से भी गहरी है हमारी हिन्दी ।
हिन्दी की गहराईयों में उतरने वालों के लिए ,
उनकी जान और अभिमान है हमारी हिन्दी ।
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जब खुद के साथ गलत हो तो,
दूसरों के साथ हो रही क्रूरता भी ,
समझ के परे हो जाता है ।
मानो ...
सुना हुआ भी, अनसुना हो जाता है ।
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माना ...पानी हमारी पहचान है ।
नदी हमारी जन्मयात्रा ,
इस तरह ...
समन्दर हमारा मंजिल बन जाता है ।
पानी बिन ,
नदी और समन्दर का अस्तित्व खो जाता है ।
तो नदी और समन्दर बिन ,
पानी का ख्वाब भी अधूरा हो जाता है ।
जरा सी पाने की चाहत में ,
बहुत कुछ छूट जाता है ।
नदी का साथ देने पर ,
कभी समन्दर भी रूठ जाता है ।
देखा जाए तो , अंत में ...
पानी ... नदी में ,
और नदी ...समन्दर में समा जाता है ।
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आज रब से माँ के खुशियों की माँग की ,
माँगते- माँगते अहसास हुआ...
माँ की खुशियाँ माँगते-माँगते ,
हमने अपनी ही खुशियाँ माँग ली ।
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