Harshita Yadav   (हर्षिता की कलम)
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🏣 deoria, UP
Joined 1 November 2017


🏣 deoria, UP
Joined 1 November 2017
4 OCT AT 10:49

सिहर जाता है बारिशों को देख ये तितली सा मन,
भीगे पंखों का बोझ अगर उठा न पाए तो?

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29 JUL AT 20:49

बेशर्मी भी आज मुस्कान पर शर्मा गई,
दर्द लिए दिल में वो होंठों से मुस्कुरा गई।।

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19 JUL AT 16:50

दफन था जो कबसे अब वो कलम जाग रहा,

लगता है कोई भूला घर वापस आ रहा।।

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18 JUL AT 20:44

वक़्त की रंजिशों में हम फसते चले गए,

बुनने चले थे ख्वाब और उम्मीदें देहलीज़ से आकर लौट गई।।

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13 JUL AT 13:24

हसरतें- ए- दीदार का गुनाह हम करते रह गए,

वो आए और शब की सजा सुना के चल दिए।।

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1 JUL AT 11:10

अपने गुरूर में हम इतने मगरुर हो गए।

जलाने चले थे तुम्हारा घर,

और खुद का मकान जला बैठे।।

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26 JUN AT 20:04

हाय! ये सावन भी क्या ग़ज़ब ढा गया,
सुलगते रहे हम और ये धारा भीगा गया।।

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26 JUN AT 10:37

शायद! वक्त कोई चाल चल गया,

भीतर कुछ खिलते खिलते रह गया।

बनना था जिन्हें सदाबहार सा,

वो बस रातरानी बन के रह गया।।

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25 JUN AT 14:11

जिसको हक़ीक़त में हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं ।

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7 JUN 2020 AT 9:50

किसे पता है जिंदगी क्या गुल खिलाएगी,
आज हँसा रही कल जाने कितना रुलायेगी।
पल दो पल की उड़ान है उड़ लो पंछियों,
क्या पता कब हमारे पंख कतर ले जयेगी।।

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