तेरी एक मुस्कान ही काफी है मेरे लिए,
क्या जरूरत है तू शब्द जा़या करें मेरे लिए।
इन दूरियों में थोड़े उदास तो हम भी रहते हैं,
पर इसके बावजूद भी प्यार बहुत है तेरे लिए ।
तेरा हंसना, खिलखिलाना सब याद आता है,
बस तुझसे शिकायत है तेरे रोने के लिए।
हसरत है तूं हंसती रहे हमेशा,
फिर इस मुस्कान पे जान हाजिर है तेरे लिए।
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खामोशी का आना भी एक आवाज़ है
बस इसे सुन पाना थोड़ा नासाज़ है.
वक़्त हालात जज़्बात कुछ तो बदले होंगे
यू तो नहीं ये भी बात है.
चलो खतम करते है ये चुप्पी भी
थोड़ा मुस्कुराहट दिखाते है,
कहीं इसका भी जवाब ना देना पड़ जाए
आखिर तू क्यूँ ही उदास है...-
जो दौड़े जा रहे बेतहासा जिंदगी में,
थोड़ा थम, ठहर के तो देख,
फ़ना तो एक दिन सबको ही हो जाना है,
तेरे पास, तेरे अपने भी हैं,
कुछ पल उन्हें जिगर भर के तो देख.-
कोई बहुत सालों वक़्त नहीं बिताया हमने साथ
ना ही की तोहफ़ो और मोहब्बत के कश्मो रस्मो की बात
बस शायद कुछ था जो खुद में सिमट के रह गया
वरना किन्ही हर्फ़ो में था पूरे जन्म रहने को साथ.-
कई कतरो में बिताई है जिंदगी,
अब शायद हम खुद भी कतरो में हो गए हैं.
खुद का थोड़ा सा हिस्सा बचा था मुझ में,
वह लगता है अब तुझ में हो गया है.
समेटने की कोशिश में हूं कुछ बिखरे टुकड़े अपने,
लेकिन अब क्या करूं जो दिया वापस लेने की आदत में नहीं है.
शायद यही है मुस्तकबिल में कुछ बाकी रह जाना है,
खुद में रह कर अधूरे से ही रहना रह जाना है.-
तेरे अक्स से भी लफ़्ज़ ढूंढ लिया,
उसके शब्ज़ मे खुद को भुल गया
कुछ तो असर अब भी है उस शक्स का
आखिर जायका उसके यादो का आज फ़िर चख लिया.
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अपने अंदर के बच्चे को हमेशा ज़िंदा रखिये साहब
हद से ज्यादा समझदारी ज़िंदगी को बेरंग कर देती है।-
सोचा चलो एक और नई तलाश करते हैं,
खुद को ढूंढने का एक बार फिर प्रयास करते हैं.
किसी की तलाश में जिंदगी में कहीं खो गए थे हम,
किसी अनजान रस्तो में न जाने कहां कब से सो गए थे हम.
पता नहीं नींद से जगे है या नहीं,
क्या पता अपने रास्तों पर चले है या नहीं,
उस अंधी दौड़ से दूर हुए हैं या नहीं,
वीभत्स जंगल के अंधेरे अभी गए हैं या नहीं.
उस गहरे समंदर में सूरज की पहली किरण की तलाश में है हम,
अब फिर से खुद से बातें करने की आस में है हम.
एक चमक थी जिसके उजियारे में सब धुंधले हो गए,
न जाने कब हम रहती आंखों के साथ अंधे हो गए,
आवाज कुछ गहरी थी, जहां हम खो गए,
शायद उसी दबाव में कुछ बहरे से हम हो गए.
खुद की दृष्टि में स्वयं को पाने की तलाश में हैं हम,
अपनी अंतरात्मा को सुनने, थोड़े बेकरार से हैं हम.-
वो ज़हन में भी ना रहा, और बिसरा भी नहीं,
वक्त बदला पर इस वक्त में कोई संभला भी नहीं,
फिजा, मौसम, जज्बात, गुरुर और हालात सब बदले,
पर ये कमबख्त कुछ ख्यालात हैं जो जगह से रत्ती भर भी हिला नहीं.-
कुछ रस्ते चले हम सुनहरे थे
कुछ पर्वत जैसे ऊंचे थे तो कुछ गहरे खाई जैसे थे
कुछ झरने जैसे बहते थे तो कुछ पत्थर जैसे ठहरे थे
कुछ अनजाने कुछ अच्छे थे
कुछ जाने पहचाने पर गड्ढे थोड़े गहरे थे
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी पर तो कुछ फर्राटे भी भरते थे
कुछ बहुत रोमांचित करते थे
रिश्ते उनसे आखिर उनसे जो पहले पहले थे
बस वक्त के थोड़े पहरे थे जज्बात बस थोडे ठहरे थे।।
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