तुम अकड़ हो,
या तर्क हो,
तुम फ़र्क हो
या फख्र हो,
तुम ज़िक्र हो
या ज़िद हो,
तुम दंड हो
या अखंड हो,
तुम वादों का मूल हो,
या बातों का भ्रम हो
ऐ मन,
तुम क्या हो?
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आओ बैठो आज तुम्हारी पेंशन बाँध देता हूँ
ए-दर्द सुन अब हर महीने बाद मिलाकर मुझसे-
किसे अपना दर्द सुनाये,
यहाँ सब अपने होते हुये भी बने हैं अजनबी पराये..!!-
वीरान-ए-घर में जन्नत की लहर आती है
जब घर में माँ खिलकर मुस्कुराती है.....-
ए दिल तुझे क़सम है हिम्मत ना हारना,
दिन ज़िन्दगी के गुज़रे जैसे गुज़ारना,
उल्फ़त के रास्ते मे मिलेंगे हज़ार गम,
आ जाए जान पर भी ग़म से न हारना।
रोने से कम न हो यदि तेरी मुश्किलें,
बिगड़े बुरे नसीब को हँसके सहारना।
ए दिल तुझे क़सम है हिम्मत न हारना,
दिन ज़िन्दगी के गुज़रे जैसे गुज़ारना।-
ना मेरा एक होगा , ना तेरा लाख होगा .
गुरूर ना कर शाह - ए - शरीर का ,
तेरा भी खाक होगा मेरा भी खाक होगा ।-
ए जिन्दगी काश
तू कोई किताब होती
तो जान जाती
आगे क्या क्या होना है
कब क्या पाना है और
कब क्या मुझको खोना है
कब कब हंसना और
कब कब मुझको रोना है
फाड़ देती उन लम्हों को
जिन्होंने मुझे रुलाया है
जोड़ देती कुछ उन यादों को
जिन्होंने मुझे हंसाया है
करती कुछ हिसाब की मैंने
क्या खोया क्या पाया है
वक्त से छुप के जाती पीछे
उन टूटे सपनों को फिर से
अरमानों से सजाती मैं
कुछ पल ही सही
खुल के तो मुस्काती मैं
मिल जाता वो समय पलटकर
फिर खुशियां भर कर लाती मैं।।
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"रफ्तार नहीं जिंदगी रुकेगी,
मौत के साए में सब कुछ लूट जाएगा,
सिर्फ बचेगी, अकेले जिंदगी की राह।
कभी ना रास आएगी, रफ्तार की हवा हर जगह मौत ही मौत की दरकार है।।
यह एक ऐसा रहनुमा पल है,
जिसकी कोई रफ्तार नहीं, अब तो डर भी लगने लगा है।
इस रफ्तार से जब मौत ही नहीं रुकेगा, तो इस देश में जिंदगी का मोल नहीं रहेगा।
ए खुदा अब बचाले इस रफ्तार भरी जिंदगी को कहीं और भी खतरनाक ना हो जाए,
यह मौत का सिलसिला कम नहीं होगा।
तू भी देखने के बाद रोता और बिल्कत्ता दिखाई देगा।
बचा ले, बचा ले, बचा ले,
अब तेरे ही सहारे हैं, सब, कब आएगा तू, कब आएगा, तू, कब आएगा तू।।
ए खुदा बचाले इस जिंदगी को.......
कहीं देर ना हो जाए, तेरे ना आने से।।
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@By Vivek....-
क्या आज भी चांद निकलेगा नहीं ?
वो स्थिर एक समान होकर भी
क्यों घटता बढ़ता रहता हैं
कितना बेचैन
हो उठता हैं ना मन
एक रोज की अमावस्या से
हां हो भी तो क्यों ना हो
सीधा मन से जो से रिश्ता हैं उसका
और मन उसके बिना
तपिश से निरन्तर जलता रहता हैं
शायद चन्द्रमा का दूसरा नाम
शीतलता है
उसमें कुछ तो आकर्षण हैं
जो निरन्तर मुझे
अपनी ओर खींचता हैं
और मैं चल पड़ता हूं
उसकी और
शायद अब आदत हो चुकी हैं
उसकी और
उसकी शीतलता की...-
हर पाप का कफ़्फ़ारा नही मिलता,
समंदर की गहराईयो में माँझी को
किनारा नही मिलता, ए-इंसाँ खुदा है,
ख़ौफ़-पा जुर्म में खुदा का सहारा नही मिलता।-