Deepti Bhatt   (Deepti Bhatt)
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Joined 15 May 2021


Joined 15 May 2021
1 DEC 2023 AT 0:09

कहा करते थे तुम कि हर शाम हाल पूछेंगे तुम्हारा
बदल गए हो या तुम्हारे शहर में शाम नहीं होती

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30 NOV 2023 AT 0:00

मुद्दतों बाद खुले आसमां में
कुछ पल खुद के लिए लाई हूं
बेफिक्र होकर ताक रही हूं उड़ते परिंदों को
आज न कोई सोच न कोई काम लाई हूं

चाहत अरमां ख्वाहिशें सब छोड़ कर
अपने सवालों के जवाब लाई हूं
आज़ाद कर खुद को परवाहों से आज
न कोई दर्द न कोई दुआ लाई हूं

खाली कर के दिल दिमाग दोनों को
खुद को खोजने एक दिशा लाई हूं
अरसा बीत गया सब को खुश करते करते
भूल कर सब को बस अपना नाम लाई हूं

कहने को तो हर शाम है रोज जैसी
आज हंसी की मोज ले आई हूं
मुद्दतों बाद खुले आसमां में
कुछ पल खुद के लिए लाई हूं।।

Deepti Bhatt

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20 SEP 2023 AT 20:19

अरमां कुछ यूं थे हमारे
चाहत में शामिल तुम थे हमारे
वीरान सी हो गई जिंदगी मेरी
तुम ही तो थे इस दिल के सहारे


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19 SEP 2023 AT 23:34

मेरी फितरत में नहीं थे
तमाशे करना
सब जानती थी
मगर खामोश रही

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17 SEP 2023 AT 23:48

न जाने क्यों आज कल मुस्कुराने लगी हूं मैं
न जाने क्यों आज कल गुन गुनाने लगी हूं मैं
खूबसूरत सी लगने लगी है अपनी ही अदा
न जाने क्यों आज कल इतराने लगी हूं मै
उलझी जुल्फें सुलझानाअच्छा लग रहा है
महकती हवा में लहराना अच्छा लग रहा है
झूम लूं सागर की लहरों के संग संग
न जाने क्यों आज कल बलखाने लगी हूं मैं

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13 AUG 2023 AT 23:09

मैं ढूंढ रही हूं अपनी कविता
अपने अंतर्मन अल्फाजों में
कुछ ख्वाबों कुछ ख्यालों में
अनसुलझे कई सवालों में

मैं ढूंढ रही हूं अपनी कविता
कुछ सुर में कुछ तालों में
दिन महीनों कुछ सालों में
चमकते अनगिनत सितारों में
कुछ अंधियारी सी रातों में

मैं ढूंढ रही हूं अपनी कविता
बारिश की पहली बूंदों में
पतझड़ के गिरते पत्तों में
बसंत के खिलते फूलों में
शीत की ठंडी रातों में

मैं ढूंढ रही हूं अपनी कविता
उगते सूरज की किरणों में
ढलते सांझ के साए में
मस्तिष्क के उठते प्रश्नों में
या मन के दिए जवाबों में

मैं ढूंढ रही हूं अपनी कविता
कभी वीरान सी गलियों में
कभी दौड़ती सड़कों में
कभी सुमन के अर्पण में
कभी संवारते दर्पण में

मैं ढूंढ रही हूं अपनी कविता

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8 JUL 2023 AT 22:52

ये सावन की बारिश भी कमाल करती है
सब जान कर भी सौ सवाल करती है
मन में छाया सुकून है और ये पगली
यादों को लाकर बवाल करती है
ये सावन की बारिश भी कमाल करती है
भीगूं तो एक आशियाने की तलाश
और बैठू कभी खिड़की पे तो
झूमने को मदहोश हो जाती है
ये सावन की बारिश भी कमाल करती है
करती है शरारत, कभी चुप हो जाती है
मुस्कुराती है देखकर मुझे आजमाती है
रौनक मेरे चेहरे की समझ जाती है
ये सावन की बारिश भी कमाल करती है

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26 JAN 2023 AT 6:08

Happy Republic Day

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19 OCT 2022 AT 23:39

मिली जब अंखियां पहली बार में रहा न होश वक्त का
गुजर रहा था दिन यूं ही सुबह से लेके शाम का
न नींद थी न चैन था इंतजार का वो दौर था
धड़कने लगा था दिल इश्क का जो शोर था
कहा था उसने चलो चले मुश्किलें न हो जहां
रहें जहां सुकून से प्यार बेशुमार हो वहां
रुक गया सनम वही कहा की इंतजार कर
प्यार ही नहीं है सब कमाई का जुगार कर
नहीं सुना चला गया रो के रात काट रही
एक खत के इंतजार में राह देखती रही
गुजर गए कई मौसम दिन महीने साल भी
पर सनम को आने दो रहा यही मलाल भी
आ गई बारात भी लाल जोड़े में सज गई
ले गया ब्याहकर भूल के सब चली गई
गुजर गया समय सनम आके ढूंढने लगा
मिली नहीं वो कही छटपटाने अब लगा
उदास होकर निकल डगर को उसकी मापने
देख के निशब्द रह गया थी खड़ी वो सामने
चलो चले यहां से होंगे तुम और हम जहां
हंस के बोली जाइए फिर कभी न आइए
मेरी कसम न आइए यहीं से लौट जाइए।।

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4 MAY 2022 AT 20:47

क्यों बैठे गुमसुम से हो तुम
क्यों तन्हा उदास हो
क्या बात दबाए दिल में हो
कुछ तो कहो क्या बात है
तुम्हें देख उदास ,मन में
उठते है सवाल कई
क्यों हो नीरस से बैठे
कुछ तो कहो क्या बात है
खुद से ही सवाल करता हूं
क्या मैंने है कोई बात कही
बैचेन करती ख़ामोशी तुम्हारी
कुछ तो कहो क्या बात है
खिलखिलाती सुबह थी तुम
सुकून भरी साम थी
क्यों कर दिया अंधेरा इतना
कुछ तो कहो क्या बात है।।

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