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मैं चाहता हूँ मेरा भी कोई उस्ताद हो
मगर
ये नहीं चाहता कि हर कोई मुझपर उस्ताद हो-
माना के लिखने में हम,
आप जैसे उस्ताद नहीं।
जरा हम पर भी गौर करें,
कम हमारे भी जज़्बात नहीं।-
उम्मीद नहीं थी तो जुगुनू लिए फिरते थे,
पर चाँद बुझाने में भी उस्ताद निकले तुम..-
अब ये समझ रहे हैं कि उस्त़ाद हो गये,
जब से वह राजधानी में आबाद हो गये।
भाती नहीं थी कोई जिन्हें बात कल तलक,
उल्फ़त के सब सब़क उन्हें भी याद हो गये।
उनके लिए है खेल मोहब्बत की दास्तां,
संदेश भेजकर चार जो फरहाद हो गये।
अब डर नहीं जरा सा भी दिल में रहा कोई,
सहसह के ज़ुल्म ज्य़ादती फौलाद हो गये।
पूरे जो कर चुके हैं सभी फ़र्ज अब तलक,
हर फिक्र से आज वो आजाद हो गये।-
ना तुम नौसिखिया ना वो उस्ताद
उम्र के हर पड़ाव पर मतभेद होते हैं जनाब-
प्यार-एक-तोफा बताया हमारे उस्ताद ने
पर नफरतें-काग़जी कराया मेरे यार ने
कहते थे उस्ताद आवाज बुलंद होगी एक दिन
पर उस आवाज को दबाया मेरे यार ने
उस्ताद ने ख़ैरात मे जगाई एक आग सी थी
उस आग को भी ठंडा कराया मेरे यार ने
पर होंगे ऐसे यार ये कभी बताया न उस्ताद ने, बताया न उस्ताद ने-
वक्त ने सिखा दिया हैं हर पैतरा सफर का...
अब किसी उस्ताद की जरुरत ही नहीं मुझे...-
दुनिया वो किताब है,
जो कभी नहीं पढ़ी जा सकती
लेकिन जमाना वह उस्ताद हैं
जो सब कुछ सीखा देता है..!!-