सुना है,
तुम्हारी उस अदा के खूब चर्चे हुआ करते थे,
भरी महफ़िर,चोवारे,सरे बाज़ार हुआ करते थे,
मेरा ही मैखाना बचा हुआ था,रुसवाई के लिए।
क्योंकि उसके आने से कभी बुझे दीये भी जला करते थे,
Satwik Mishra-
सुना था हमनें कि प्यार मैं दिल दिया जाते
मोहब्बत होती नही इज़हार किया जाते
इतना ही काफ़ी था प्यार करने के लिए क्योंकि
हमारे तो भारी महफ़िल में रुसवा करने की धमकी दे जाते— % &-
पहाड़ तोड़ कर ग़मो का मुझपर
यू वे ख़ौफ़ अपनी जान रखना
खुशिया मनाना मेरे जनाज़े की
निडर,निर्दोष अपना ईमान रखना
रखना इल्म इस बात का,कि
बचाकर चील गिद्दों से अपनी खाल रखना,क्योकि
हर तरफ़ा तलाश जारी है तुमारी
बचोगे या सरेआम मरने का ख़ौफ़ रखना
बहुत आसा होगा जन्नत से जहनुम तक का सफर
ये बात दिलों दिमाक मे याद रखना-
हूबहू उतार दू तुम्हें अपनी कलम से यूँ ,
इतनी मशहूर बनो तो सही
करा दू तुम्हें दीदार जन्नत का यूँ ,
वो लिबाज़_ए_मोहब्बत पहनो तो सही
मिसाल कायम करें ये जमाना तुम्हारी
उस सलीम कि अनारकली बनो तो सही-
दिल को जंजीर बनाया तुमने
मेरी खुश किस्मत को फ़कीर बनाया तुमने
हर तरफ़ बस जाल ही बुने थे तुमने, शायद
इसी आस से मोहब्बत का लिबाज़ मुझे पहनाया तुमने-
उनके न होने कि आहट से
मेरे दिल मे चोट आना
न करती ऐसी मोहब्बत
जो सुर्खियों में रोज आना
अगर न हो मेरे चाँद का दीदार एक दफ़ा
तो ऐसी इश्कबाज़ी से दिल फेंक बन जाना-
लुटा कर अशिर्फिया महफ़िल में
महफ़िल_ए_जान बन गए
लड़ाकर इश्क नैनों के पेचों का
किसी के दिलों सुल्तान बन गए
आपके आने से गुलज़ार हुई मेरी महफ़िल
न जाने किस ईद का वो चाँद बन गए
हजारो लोगों को आश है तुम से मोहब्बत की
पर न जाने क्यों मेरे दिलों सरताज़ बन गए-
उस रजबाड़े के प्यारे बन्ना-सा
जिनकी मधुमय मिश्री-सी मुस्कान है,
निड़र होकर घूमा करते बन्ना-सा
बस्ती राजघराने कि जान है,
एक अलग मिज़ाज रखा करते बन्ना-सा
जो हर के मन को मोहित करता है,
गौरव है राजपूतों का बन्ना-सा
जो ठसक राजपूतानी रखता हैं,
एक बार अगर उतर जाये दिल में बन्ना-सा
फिर मुश्किल से निकल पाते है बन्ना-सा-
रक्त रंजित हुई मेरी वाणी थी
जब याद आई मुझे वो कहानी थी
जिसमे लहू तो बहा भारत का
लेकिन क़ीमत कुछ और चुकानी थी
बहा कर खून-पसीना एक
माँ कि जान बचानी थी
एक माँ कि जान के चक्कर में,
दूजी की विलख सुहानी थी
मैं वीर कहू भारत का,या
उस जननी का लाल
जिस जननी ने कोख से जनकर
सरहद को भेजा हाल
क्या ऐसी भी भारत की जननी ,
जिनकी जिंदादिली कहानी थी
नतमस्तक करू ऐसी जननी को,
जो उस वीर को जनने वाली थी
रक्त रंजित हुई मेरी वाणी थी-
जो कुछ लिखू उनको थोड़ा कम-सा है
इज़हार न करू तो ग़म-सा है,
बस,शर्माता हूँ जमाने कि उन बंदिशों से,
जिनकी तारीफ़ करने से मन को डर-सा है,-