डर है मुझे
उसी एहसास से
खुद से कुछ तुमसे
ख़ुद के टूट जाने से
तेरे बिखर जाने से
वही पास आने से
फिर दूर हो जाने से
इश्क़ हो जाने से
पर सुनो
कुछ दूर साथ चलते हैं
मंज़िल तक नहीं
राह के हमसफ़र बनते हैं
हाथों में हाथ नहीं
धड़कने एक साथ नहीं
इश्क़ नहीं बस
मोहब्बत फिर से करते हैं-
एक दिन कलम चलाऊंगी
उसकी धज्जियाँ उड़ाऊंगी
क्या किया उसने भरोसे का
हर एक को बताऊंगी-
क्यूँ चाहतें खड़ी ये करती , लाख है सवाल
मैं मुस्कुरा के दिल का तेरे , रख न सका हाल-
मैं भी उसका दिवाना था
ओ भी मेरी दिवानी थी
बिछड़ने के डर से
दोनों कुछ नहीं कहते थे-
पहली बार देखा उसे
हम उससे प्यार कर बैठे
उससे पूछे बगैर
अपना दिल दे बैठा-
_तौहीन_
तेरा हर ज़ुल्म..
सरआँखो पर राखता हूँ ...
के पलटवार को मै....
तौहीन-ए-इश्क़ समझता हूँ.....-
ईश्क में ऐसा हालात हुआ है
दुखी होने पर भी
ठीक हूँ कहना पड़ता है
आँखों में नमी को भी
पलकों से छिपाना पड़ता है
दिल में कितना भी गम हो तो भी
हर पल मुस्कुराना पड़ता है
यही दिवानों की जिंदगी है
ऐसे ही बिताना पड़ता है
किया जो वादा है
वो वादा निभाना पड़ता है-
बदस्तूर तेरा इश्क
मुझे मयस्सर जो होता..
मैं गमज़दा ना होता
गर तू बे कदर ना होता..-
मै तो हूँ बेवफा
ये सारा जमाना कहता है
एक बार दिल लगा के देख
ये एक दिवाना कहता है-