अभी बर्तन धोते समय छन्नी पर नज़र पड़ी..पिछले कुछ दिनों से चाय ठीक से छन नही रही थी..छेद बंद हो गए थे..हम ठहरे आलसी नई छन्नी लाये नही इसका कुछ किया नही... फिर अभी पानी गरम किया उसमे थोड़ी देर रखी और सींक से छेद खोल दिये..अभी चाय छानी तो बढ़िया काम कर गयी।
बस फिर क्या था एक दोस्त को फ़ोन लगाया जिस से बहुत दिनों से बात नही कर पा रहा था। अब दोनों मिलकर वही चाय पी रहे हैं।-
क्या हो, अगर किसी दिन,
चांद के अंदर भी ईगो जाग उठे?
वो इंकार कर दे,
सूरज से रोशनी उधार लेकर,
जगमगाने को, और
खुद को जलाकर,
रोशन होना स्वीकार करे।
चांद के ईगो को तो
शीतलता मिलेगी,
मगर ये दुनिया
शीतलता से वंचित रह जाएगी।-
तुम कहते हो
पंछियों से सीखूं
निष्काम कर्म करना
चहचहाना, खुश रहना
पर बुद्धि हो जाती है हावी
हर कर्म के पहले-
बांध लो अगर अक्ल पर पट्टा
हर रिश्ते लगेगा यूँही हमेशा झूठा
एक बार देखना आईने में खुद को
दूसरे को छोड़,परखना एक बार खुद को
हर सवाल का जवाब खुद बखुद मिल जायेगा
गलतियां दूसरों में नहीं खुद में नजर आएगा
कब तलक यूँही सबको झुठलाओगे
खुद को हमेशा सही, दूसरे को गलत बताओगे
टूट जायेंगे रिश्ते,नाते सारे, बाद में सिर्फ पछताओगे
सोचो तो सही, क्या जी लोगे जिंदगी तन्हा अकेले में
करोगे क्या ? पाओगे जब खुद को अकेला भीड़ भरे मेले में ?
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संवाद सूत्र(आपका स्वतंत्र)
आज जरूरी लगा इसलिए कर रहा हूँ।आज बात फॉलोवर्स की करूँगा आपसे।कुछ दिनों पूर्व तक मैं किसी को भी फॉलो करने से हिचकता था।मेरा मानना था मैं किसी को फॉलो नहीं करूंगा।इसे ईगो भी कह सकते हैं आप,मुझे प्रतीत हुआ कि मैं गलत था।आज मैंने समझा हमे स्नेह से प्रेरित करने वाले फॉलो करने वाले लोग अपेक्षाकृत अधिक सरल व उदार लोग होते हैं।सम्भवतः जिनके मन मे अहंकार की ग्रंथि नहीं होती।ऐसे लोग फॉलो नहीं नमन करने योग्य भी हैं।मुझे ये कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि आज जितना भी लिख पाया उसमे सारा श्रेय फॉलो करने वालों का है।बहुत कुछ सीखा मैंने आप सब से सर्वप्रथम हमारी दीदी लोग बड़की और छुटकी दीदी नाम क्या लेना सभी जानते हैं।फिर हमारे मित्रवत संजय जी rkap जी माधवी जी अभिभावक तुल्य आदरणीय ब्रह्नदेव शास्त्री जी सुदेश गोयल माँ।अनु जी दीप्ति जी छोटे भाइयों में महताब आलम और अतुल।आज स्वीकार करता आप सभी हमसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि आपमें हमसे अधिक उदारता व सौजन्यता है।आज जो फॉलो न करने कि दुविधा से बाहर हूँ ये आप सभी से सीखा है मैंने।
क्रमशः अनुशीर्षक में
सिद्धार्थ मिश्र
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हमारी असल समस्या है हमारा अहंकार।।अंग्रेजी ने ego कहकर इसे सातवे आसमान पर पंहुचा दिया।। कई बार हमारी उम्र से भी ज्यादा बड़ा अहंकार ही हमे असहाय एवं उपेक्षित बना देता है।।अहंकार ही मनुष्य को असामाजिक एवं अंत में अकेला बना देता है।
#अहंकारसेबचें
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मेरे हाथ का कंगन उस दम घड़ी हो गई,
तेरी ईगो जिस दम तेरे विश्वास से बड़ी हो गई.. 😎-
हद हो जाती है यार लोग इसकी उसकी सबकी परवाह करते हैं । अरे कभी अपनी परवाह भी कर लो ।यकीन मानीये जो अपना सम्मान करते हैं वो दूसरे किसी का अपमान नहीं कर सकते।यही प्रक्रिया आत्मसम्मान कहलाती है।शेष तो एटीट्यूड और ईगो आदि के विषय में आप समस्त गुणीजन बेहतर जानते हैं।हमें दूसरे की पीड़ा एहसास तभी होगा जब हम अपने प्रति भी संवेदनशील होना सीख लेंगे । दूसरे को पीड़ा पहुंचाकर स्वयं अपने आपको सुख नहीं मिलता बल्कि सदैव अपराध बोध होता है ।यही आत्मा का दर्शन है बिल्कुल सामान्य रूप में है । हमको मालूम है कि रिश्वत देना गलत है आत्मा दुत्कार रही है लेकिन देते ही हैं । हर गलत काम करने से पहले हमको पता होता है हम गलत कर रहे लेकिन करते वही हैं । क्या ये प्रक्रिया आत्माघाती होने की प्रक्रिया नहीं है?स्मरण रखीये परंपराओं का संरक्षण एवं विकृतियों का दहन ही सम्यक होता है। मानना है मानीये नहीं तो दर्शन बघारीये।कोई अंतर नहीं पड़ेगा, क्योंकि मैं कोई नयी बात नहीं कह रहा हूं ये बातें सदियों से चली आ रही हैं।और एक हम कि कुत्ते की पूंछ भी तौबा कर ले।कितनो लागत लगा दो नतीजा तो ढाक के तीन पात ही रहेगा।दूसरे की स्वतंत्रता की परवाह हम तभी करेंगे जब हम स्वयं अपनी स्वतंत्रता का सम्मान करना सीख लेंगे।सही मायनों में यही हमारी सफलता है आत्मसम्मान के साथ जीवन व्यतीत करना।
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तू ना तो
"मर्सिडीज़ बैंज़"
ना ही
"फोर्ड फ़ीगो!"
फिर काहे का
"प्राउड"
और
कैसी "ईगो...?"-