मुझे ऐसी शराब बता ऐ दोस्त
जिससे मैं नशा-ए-इश्क़ उतार पाऊँ
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मुहब्बतों में मिलके ऐसा कोई काम करें,
सारी दुनिया हमारे प्यार को सलाम करे।
मैं तेरे प्रेम में कैलाश पर चली जाऊँ,
तू मेरे इश्क़ में दरगाह का एहतराम करे।
हम मिलें ऐसे जैसे गंगा जमना मिलती है,
उसी तहज़ीब से फिर इश्क़ सरेआम करें।
ज़िन्दगी की वसीअतों का फ़ैसला कर लें,
मैं तेरे नाम करूँ और तू मेरे नाम करे।
तेरे मेरे न दरम्यान रहें ये रस्में,
ऐसा अल्लाह सबब बनाए, ऐसा राम करे।-
उम्र की ये दुश्वारियां तो रोज़ बढ़ती जाएँगी
वक्त रहते ही मोहब्बत कर गुज़रना चाहिए
जंग न लग जाये यारों इस दिल ए नादान को
रंगो- रोगन इश्क का थोड़ा तो चढ़ना चाहिए
उम्र निकली जा रही है फ़ाक़ा मस्ती में यूँ ही
इश्क में पड़कर किसी के काम आना चाहिए
एक दिन मर जायेगा गुमनाम सा ही तू यहां
नाम तेरा भी जुबां पर लोगों के आना चाहिए
है जवां वो ही के यारों इश्क जिसने कर लिया
रोग ये लग जाये तो, न फिर मुकरना चाहिए
वो हसीं मिल जाएगा तुझको ज़रूरी तो नहीं
हर हसीं चेहरे पर थोड़ा थोड़ा मरना चाहिए-
ना किसी के होठों की तबस्सुम होना चाहती हूँ,
ना इश्क में किसी के लिए फना होना चाहती हूँ!
मैं खुद से एक बार इश्क करना चाहती हूँ..,
हाँ,मैं हर जन्म में लड़की होना चाहती हूँ..!!-
शायद, मजबूरियाँ इतनी मजबूर नहीं होती,
काश! ये भी किसी से इश्क करके देखती!!-
आज पुरानी राहों से,
चलने लगा हूँ।
छुटा हुआ पिछे,
ढुँढने लगा हूँ।
अपने जो राहों से भटके थे,
उने फिर राह पर लाने लगा हूँ।
मंजिल पाने के लिए छुटे हुए,
हाथो को पकडने लगा हूँ।
जाने अनजाने मे टुटे हुए,
दिलो को मनाने लगा हूँ।
(पुरी कविता अनुशिर्षक मे पढियें)-
रफ्ता-रफ्ता उन इत्र की खूशबूओं से तुम्हारी साँसों की महक अब आने लगी है..........,
शीशियों में कैद कर रखी है,उन खूशबूओं को,क्योंकि इश्क तुम्हारी साँसों से करने लगी है!!-
मेरी इबारत का कुछ हक तुझे भी'अदा'करते है,
तेरी हिस्सें की अँधेरी शब को 'जिया' करते है!!-
सँवार देना कभी जुल्फें मेरी,गुस्सें में ज्यादा हसीन नहीं लगती है,
कौन कहता है कि,गुस्सें में लड़कियाँ जुल्फों को बाँध लेती है!!
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छोड़ दो करना,मेरी इन आँखों की तारीफें
तुम जब मेरे इश्क़ की गहराई ना देख सके।।
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