हकीकत रास न आई तो ख्वाबों से वास्ता देखा,
इश्क़ का शहर ना मिला, पत्थरों से राब्ता देखा,
टूटते देखा था किनारों पर जिस लहर को हमने
फिर रेत पर उसकी हसरतों का नया रास्ता देखा,
जमीं छूकर ही निकली थी कल ख्वाहिशें उसकी
गुरूर-ए-आसमां से आज उसका वाबस्ता देखा,
दुआएं दीं, सजदे किए, चौखटों पर माथा टेका,
पत्थर पत्थर ही रहा जिसमें कभी फरिश्ता देखा,
उनसे गैर ही बने रहते तो शायद मुनासिब होता
दरारें नजदीकियों में आहिस्ता-आहिस्ता देखा !-
आहिस्ता - आहिस्ता हम उनके
क़रीब आते गए ,
और आहिस्ता - आहिस्ता वो
हमसे दूर जाते गए......
बड़ा ही अजीब सा है हमारा इश्क़ ❤️-
सुनो आहिस्ता से कह रहा हूँ बात जो दिल में है किसी को बताना मत
ये जो मोहब्बत है न दिल में मेरे लिए इसे संभाल कर रखो जताना मत-
आहिस्ता आहिस्ता
मेरे कदम बदल रहे हैं,
दुनिया से कह दो,
अब हम संभल रहे हैं 😞-
बढ़ेगा तेरी मोहब्बत में नादिम आहिस्ता आहिस्ता
घटेगा तेरे कूचे के आशिक़ आहिस्ता आहिस्ता
दिल-ओ-ज़िगर में कुछ अजब सी बेचैनी हैं
गुन-गुनाते है जब वो कोई नज़्म आहिस्ता आहिस्ता
सब्र-ए-मोहब्बत-ओ-जान-ओ-आशिक़ी मेरे पास
ये सब कर देंगे उन पर कुर्बान आहिस्ता आहिस्ता
असर ये रहेगा अपने वस्ल में भी रंज-ए-फुर्क़त का
अब आएगा दिल-ओ-करार आहिस्ता आहिस्ता
न आएँगे वो इंतिज़ार-ए-मौत में यूँही एक दिन
गुज़र जाएँगे बहार-ए-दौर आहिस्ता आहिस्ता-
अरमानो की अर्थी जरा आहिस्ता उठाया कर ,
शांत सी हूँ मैं अब जरा धीरे पुकारा कर......-
ये ज़िन्दगी बहुत कुछ सीखा रही है।
हर मोड़ पर मुड़ना सीखा रही है,
आहिस्ता आहिस्ता.....
चलने से डर लगता था जिन रास्तों पर,
अब उसी के सहारे मंज़िल तक पहुँचा रही है।
आहिस्ता आहिस्ता.....
ये ज़िन्दगी बहुत कुछ सीखा रही है।-