जो आस्तीन पे खंजर, छुपाकर मिलेंगे
सामने से सब दिन, मुस्कराकर मिलेंगे
जो तुमसे जले हों , जलाने की लौ में
वो हमदर्दी का मरहम, लगाकर मिलेंगे
जो मिलने से रोका, जमाने ने हमको
सच कह रहे हैं, जहर खा कर मिलेंगे
दिन भर जताते मोहब्बत जो थकते नहीं हैं
किसी दिन मजबूरी का खर्रा बनाकर मिलेंगे
भूलेंगे चेहरे की झुर्री, माथे की सिलवट
बच्चे जो उनके, खिल - खिलाकर मिलेंगे
नेहरू ये जिन्ना सावरकर अगरकर सियासी
सियासत में मजहब, को ला कर मिलेंगे
दुश्मन से कह दो, कि कायर नहीं हम
गर मिलेंगे तो मैदां, में आकर मिलेंगे
नतीजा हो कुछ भी, है तौफीक इतनी
दुश्मन की आंखो से, आंखे मिलाकर मिलेंगे
'UV' हैं बड़े शातिर, ये कातिल तुम्हारे
मिलेंगे तो सारे सिनाकत मिटाकर मिलेंगे-
जिंदगी के सफ़र में जो बेहद खास थे,
असली में वे ही आस्तीन के सांप थे ।।-
लूट-मार के गवाह होते हैं आस्तीन के साँप
मक्कारी की पनाह होते हैं आस्तीन के साँप
आपके पीठ पीछे ही बसती है इनकी दुनिया
वैसे तो हर जगह ही होते हैं आस्तीन के साँप
घर में होकर भी कभी घर के नहीं हुआ करते
बेवजह की ये कलह होते हैं आस्तीन के साँप
धोख़ा देना तो इनका जन्म सिद्ध अधिकार है
सिर्फ़ अपनों में बिरह होते हैं आस्तीन के साँप
जब भी कोई तड़पता है तो इनको हँसी आती है
बेईमानी की एक सतह होते हैं आस्तीन के साँप
समझदारी इसी में है कि इनको कभी ना पालो
बर्बादी का अलग ग्रह होते हैं आस्तीन के साँप
ज़रा दूरी बनाकर रखना इनसे हमेश़ा "आरिफ़"
गंदगी की एक गिरह होते हैं आस्तीन के साँप
अपने आप को "कोरा काग़ज़" जैसा दिखाते हैं
ज़ुल्म की असल वजह होते हैं आस्तीन के साँप-
मैं खुद को आग न कहता
तो भी वो उतना ही जलते
मुझे ख़बर है मेरे आस्तीन में
कितने जहरीले साँप हैं पलते
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नाप लेता है मेरा दर्ज़ी, तो पूछा करता है मुझसे,
दोस्त ज़्यादा हों, तो आस्तीनों में गुंजाइश रख दूँ..-
इतना जलोगे मुझसे जानता न था
आग है मुझमें मैं ये मानता न था
मेरी आस्तीन के साँप हो तुम
गलती ये मेरी पहचानता न था-
रोशन किया जिन्हें वो ही जलने लगे हैं
बन के साँप आस्तीन में पलने लगे हैं
उठ गया है भरोसा इस जमाने से
हम आजकल अकेले ही चलने लगे हैं-
प्रिय साँपों,
वापस आस्तीनों में समा जाओ,
फ्रेंडशिप डे समाप्त हो चुका है....!-
ये कौन जानता था कि चरित्र उनका दोहरा था
वो थे एक खिलाड़ी और मैं सिर्फ एक मोहरा था
देख न सके हम अपने आस्तीन के साँपों को
अँधेरा नहीं था मगर वहाँ घना कोहरा था-
वो सीने के बल चलता था
मेरी आस्तीन में रहता था
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मौत मेरी ज़हर से हुई है।-