मन...!
मन के द्वारे मन ही बैठा,
दिवास्वप्न में खोया-खोया...
पूछ रहा है मुझ से,
नाम पता यह अपने ही मन का।
मन के भीतर
मन ही मन से मान गया...
और मन ही मन से रहा कई दिनों तक
रुठा-रूठा।।
इस ने मन की जिद़ को जाना
मन ही मन को अब लूटे...कहे प्रेम को झूठा।।
मन ने बांधे फिर-फिर,
प्रिय-प्रीतम संग, कोरे सूत के धागे।
पूछे रह रह कर हिसाब़...
प्रेम में हार भली की जीत भली है रे मनवा...?
क्या सदा रहा है...
सदा रहेगा...?
न-हासिल ही नतीज़ा,
प्रीत का??-
दरिया तेरी अब खैर नहीं,
बूंदों ने बगावत कर ली है,
नादान न समझ बुजदिल इनको,
लहरों ने बगावत कर ली है,
हम परवाने हैं, मौत समां,
मरने का किसको ख़ौफ यहाँ।
रे तलवार तुझे झुकना होगा,
गर्दन ने बगावत कर ली है...
#आशुतोष_राणा-
मन...!
कोरी प्रीत है मन की
लुट जाती
जहाॅं मिलता
प्यार...
नेह के दर्पण का
ये देवालय
का द्वार...
प्रीत हुईं ना झूठी
मन कहे
सौ बार...
कोरे सूत के
हैं धागें
बांध लें चाहें
खोलकर
बार बार...
नेहा ना
लगाईयों जी
मन जाएगा
बस यहाॅं
हार...!!
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**मुहब्बत आसान नही**
दिल को चुराना कोई, आसान थोड़े है
प्यार में खो जाना, आसान थोड़े है
सच्ची मुहब्बत हो जाना,आसान थोड़े है
किसी का दिल रख कर, संभालना आसान थोड़े है
रातों में छुप-छुप कर बातें करना, आसान थोड़े है
प्रेमिका के नंबर को स्वीट होम नाम से सेव करना, आसान थोड़े है
रूठ जाने पर रात भर मनाना, आसान थोड़े है
सच्ची मुहब्बत में खुद को मिटाना, आसान थोड़े है
हीर और रांझा बनना, आसान थोड़े है
प्यार में हमदम को सब कुछ समर्पित करना, आसान थोड़े है
रोते हुए को गले लगाना, आसान थोड़े है
हार कर 'विजय' होना, आसान थोड़े है
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शब्दों को अधरों पर रखकर........
मन का भेद न खोलो.......
मैं आँखों से सुन सकती हूँ .....
तुम आँखों से बोलो.....
जब जब हृदय मथा है मैंने .......
तब तक अधर लगे कुछ कहने......
जब जब अधर सीए हैं मैंने......
तब तब नयन लगे हैं बहने .......
मत बहने दो नयनों को .......
आँसू हैं सिंगार हृदय का.....
हृदय में ही रहने दो.......
-आशुतोष राणा-
पूजा वसान ध्यान से करें जो पाठ स्तोत्र का।
मुकुट बने वही मनुज परम विशिष्ट गोत्र का।
उसी को देते हैं समस्त संपदा शिव: शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा धरा शिव: शिवम् !
वे शेष है,अशेष है,प्रशेष है,विशेष है।
जो उनको जैसा धार ले वो उसके जैसा वेष है।
वे नेत्र सूर्य देवता का चंद्रमा का भाल है।
विलय भी वे प्रलय भी वे,अकाल,महाकाल है॥
उसी के नाथ हो गये,जो उनके साथ हो लिया।
वही के हो गये है वे जहाँ सुना शिवः शिवम्।
डमड्ड डमड्ड डमड्ड डमरु कह रहा शिवः शिवम्।
तरल-अनल-गगन-पवन धरा-धरा शिव: शिवम् !
आलोक श्रीवास्तव हिंदी अनुवादक,
आशुतोष राणा द्वारा पाठन-