हर तरफ थी फकत बात बरसात की,
तुम मिले आ गई रात बरसात की,
रात रुक ना तेरा इत्तेफ़ाक़ था या फिर,
थी कोई वो खुराफात बरसात की
आंधियों की तरह आयी, तूफ़ा सी फिर,
खो गई वो मुलाक़ात बरसात की,
गांव सूखे थे पर वो शहर खा गई,
इक यही है बुरी बात बरसात की-
13 JUL 2020 AT 20:29
12 NOV 2019 AT 7:05
ज़िन्दगी चल रही है असंतुलित में
जैसे एक पहिये पर सवार हूं
ये सारी बेबसी इसीलिए हैं क्यूं की
तेरे इश्क़ का मारा हूं ।-
11 NOV 2019 AT 15:37
कभी पानी तो कभी हवा सा हूँ,
गुम हूँ अपनी आवारगी मे,
कभी तुझ सा तो कभी खुद सा हूँ।-
9 APR 2021 AT 11:17
तुम इश्क़ को इश्क़ ही रहने दो
मुसाफिर न बनाओ.... ए माज़ी
इसकी कोई मंज़िल नहीं होती
ये तो दिलों में सफर करता है
और
जो कह के इश्क़ किया जाए
तो वो इश्क़ ही क्या
ये तो वो मंज़र है
जो आंखों से बयाँ होता है-
10 NOV 2019 AT 21:52
आज मेरे शब्दों ने भी कुछ आव़ारगी की है।
किसी की ख़ामोश ज़ुब़ा से गुफ्तगू की है।-
1 SEP 2021 AT 15:33
7 APR 2021 AT 11:41
तेरा हाल-ए-इश्क़ इन आँखों में लिखा है
कभी तस्सवुर में देखना इन्हें
मेरी हर नज़्म का लफ्ज़ क़ुर्बान है तुझपे
कभी फुरसत मिले तो पढ़ना उन्हें
काफ़िर हूँ तेरे इश्क़ की इस क़दर
के हर सज़दे में तेरा नाम पढ़ा है-