जिन्हें कभी बदलना न पड़ा
वक़्त घर से आने जाने का
वे कहते हैं बदल चुका है
तौर-तरीका ज़माने का-
तुम कहो
परिवार टूट रहे हैं
मैं कहूँगा
आधुनिक जीवन की आज़ादी
तुम कहो
लोग अकेलेपन से ग्रस्त हैं
मैं कहूँगा
3 BHK फ्लैट कैसा रहेगा
तुम कहो
Amazon का जंगल जल रहा है
मैं कहूँगा
Amazon की सेल में ख़रीद लेंगे-
तुम कहो
विज्ञान पर ध्यान देना होगा
मैं कहूँगा
हमारी संस्कृति, हमारी परंपराएं
तुम कहो
कला को ज़िंदा रखना है
मैं कहूँगा
सलमान खान की फ़िल्म देखी जाए
तुम कहो
युवाओं के पास नौकरी नहीं है
मैं कहूँगा
अब 4G इन्टरनेट अनलिमिटेड फ़्री-
तुम कहो
भूख से बच्चे मर रहे हैं
मैं कहूँगा
5 trillion इकाॅनमी बनेंगे
तुम कहो
इंसान-इंसान को मार रहा है
मैं कहूँगा
आओ वहाँ दीवार बनाते हैं
तुम कहो
मुझे कहने से रोका जा रहा है
मैं कहूँगा
सब Leftist-liberal,
देश-विरोधियों का किया हुआ है-
तुम कहो
देर हो जाए उससे पहले कुछ करना होगा
मैं कहूँगा
साठ साल में तो कुछ किया नहीं
तुम कहो
ये दुनिया समझना क्यूँ नहीं चाहती
मैं कहूँगा
तुम्हें दुनियादारी की समझ नहीं-
हैं विलियम, हैं ग़ालिब, हैं मुंशी, हैं नीत्शे
जिस समंदर की लहरें, उसका क़तरा मैं हूँ-
- कुछ करना शुरू तो इसीलिए करते हैं ना कि एक दिन उसका अंत होगा, और उसका परिणाम मिलेगा। अंत का डर ही तो है जो हमसे अनंत होने के प्रयास करवाता है। जब मैं, तू, और कुछ भी कभी अंत होंगे ही नहीं, तो हमारे होने का मतलब ही क्या?
-- अंत का डर नहीं, जीवन का महत्व अनंत होने के प्रयास करवाता है। डरा हुआ आदमी अपने कमरे में कैद रहता है। प्रयास तो वो करते हैं जिन्हें खोज होती है। जा खोज अपने लिए उद्देश्य। अपना महत्व ढूँढ।-