इंसान के हाथों की बनाई नहीं खाते
हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते-
मेरे बारे में क्या जानना है,
और तुम्हें क्या बताऊँ,
कह तो दिया कि,आम सा लड़का हूं,
अब क्या कोई झूठी कहानी बनाऊं,
ये जो हो जाते हो हर बात पे नाराज़ तुम,
ये तो बताओं कि और कितनी बार मनाऊ,
कुछ राज मेरे अपने है,
अब हर राज की वज़ह बताऊं,
पसंद हो तुम किस कारण से,
ये भी अब तम्हें लिख के बताऊं,
हर चीज़ में मेरी बुराई ढूंढते हो,
अब तुम ही बताओं क्या इतना बुरा हूं,
प्यार है तुमसे इसलिये चुप हूं,
कहो तो अपनी बुराई दिखाऊं ।-
मलीहाबाद के आम खाने में उस्ताद अब्दुल क़ादिर ख़ाँ से किसी ने पूछा कि आप एक बार में कितने आम खाते हैं? तो ख़ाँ साहब ने जवाब दिया - एक दाढ़ी
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आम का अचार खाकर जब वो अपनी एक आंख दबाती थी,
यकीन मानो उसकी वो शकल देखकर मेरी धड़कन रूक जाती थी।-
भीड़ में, भीड़ का ही मैं हिस्सा हो गया,
खास बनने की कोशिश में, आम किस्सा हो गया..!
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कुछ लोग इस जग में न जाने कैसे अपनी माँ से ऊब जाते हैं
हम तो आम का आचार देखते ही माँ की याद में डूब जाते हैं।-
यह सोचकर लिखा था कुछ
कि लोग पढेंगे
नाम होगा हमारा
फिर समझ आया कि पहले नाम बनाना पड़ता है
वरना लिख तो यूँही कोई भी लेता है, आम है
पर पढा तो सिर्फ उन्हें जाता है जिनका नाम है-