QUOTES ON #आब

#आब quotes

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10 MAY 2020 AT 8:33

बना लो मुझे मुकाम या चाहे मंजिल तेरी,
तुम हो रहनुमा, मुझे तुम रास्ता बना दो!

बना दो तारा भोर का या साँझ का सितारा,
तुम हो कायनात, मुझे आसमान बना दो!

बना दो दरख़्त नीम का चाहे कंटीला बबूल,
तुम हो गुलशन, मुझे गुल-ए-बागवां बना दो!

बना दो आब दरिया का या चाहे खारा समंदर,
तुम हो कश्ती हयात की, मुझे पतवार बना दो!

बना दो मुझे खामोश हर्फ़ या चाहे अल्फ़ाज़,
तुम हो तहरीर इश्क की, मुझे कलम बना दो!

बना दो ख़्वाब मुझे या चाहे दिल-ए-एहसास,
तुम हो वजह जीने की, मुझे हकीकत बना दो!

बना लो मुझे साँसे या चाहे धड़कन-ए-दिल,
तुम हो जिंदगी, मुझे आख़री ख़्वाहिश बना दो! _राज सोनी

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13 MAY 2020 AT 8:41

हम तो उनकी हर इक बात से इत्तेफाक रखते है,
संग अपने, अपना दिल बेहद शफ्फाक रखते है!

हर लम्हा मुमकिन है, इश्क में हद से गुजर जाना,
किंतु जहन में उससे मोहब्बत बेहिसाब रखते है!

जीस्त को यूँ जाया न कर तुम कफ़स में बैठे बैठे,
परवाज़ तो कर जरा, हम खुला आसमाँ रखते है!

तमन्ना इतनी है, रूहानी इश्क मिल जाए हमको,
कोई हरगिज ये न सोचे, इरादा नापाक रखते है!

हमको नहीं आता कैसे, दर्द छुपाते हैं पलकों में,
किंतु नजरों में अपनी, आब–ए–सैलाब रखते है!

जी करे जब 'राज', लिख दे कोई कविता, गजल,
दिल मेरा है तख़्ता-ए-स्याह, जेब में चाक रखते है!

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25 SEP 2021 AT 5:40

आब-ए-आईना

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2 SEP 2018 AT 15:25

मैं कोई, आबशार बन जाऊँ,
और तू कोई, आब-ए-रबाँ, बन जाए......,
मैं तुझ में, कुछ यूं गीरुं, तू मुझे,
खुद में समां के, कहीं दूर ले जाए ......!

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22 MAR 2021 AT 21:13

वो मां की ही तड़प थी अपने शीरख्वार बच्चे के लिए
की एड़ियों के रगड़ने से भी चश्म-ए आब फूटता है।।

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10 JUN 2021 AT 2:49

माक़ूल ज़िन्दगी है चाहत नहीं है बिल्कुल
ख़ामोश बैठने की आदत नहीं है बिल्कुल

हम आब के सहारे जीते रहे हैं अब तक
अब आब चाहिए पर दौलत नहीं है बिल्कुल

हर लफ़्ज़ इक ग़ज़ल है हर बात इक इशारा
अल्फ़ाज़ झूठ बोलें हैरत नहीं है बिल्कुल

तफ़तीश करके देखो हर घर की लो तलाशी
हर क़ौम में इबादत, बरकत नहीं है बिल्कुल

वो दौर अब नहीं है जब गाँव में था 'आरिफ़'
सब शहर हो गया अब, उल्फ़त नहीं है बिल्कुल

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18 JAN 2021 AT 11:36

उसे अब हमारी ख़बर ही कहाँ है
गिरे और अब वो नज़र ही कहाँ है

मोहब्बत भी सूखी दिलों में हमारे
बिना आब कोई शजर ही कहाँ है

न रिश्ते न नाते बने सब हैं दुश्मन
सुकूँ से भरे अब वो घर ही कहाँ हैं

जिसे देखो चलता चला जा रहा है
तरक्की को जाती डगर ही कहाँ है

गुनाहों से बचना सिखाते हैं सब को
ख़ुदा ने भी भेजा कहर ही कहाँ है

गरीबों को मारे हमारा ज़माना
ज़माने को मारे ज़हर ही कहाँ है

मैं 'आरिफ़' तू हाफ़िज़ सभी हैं मयस्सर
इबादत जो समझे बशर ही कहाँ है

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18 MAY 2020 AT 22:59

आब-ए-रवाँ की तरह हो गई है जिंदगानी,
कितना गिराया किसी को कुछ पता नहीं।

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10 JAN 2019 AT 1:10

आग की आँख में आब दे गयी
सिसकता हुआ एक ख़्वाब दे गयी
असली चेहरा आ गया सामने
जब उतार कर अपना नक़ाब दे गयी

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22 MAR 2021 AT 14:53

आब/آب
जल/water

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