मैं सर्वोत्तम हूं मैं हीं परम आत्मा हूं
मुझ मैं सब आत्मा विलीन हैं!
और मैं सब आत्मा में विलीन हूं
मैं सनातन हूं मुझ से हीं सनातन है।
मेरी पहचान सत् संस्कृति सत्य से है
सात्विक आहार और सद्व्यवहार में हूं
सदाचार सत् चित् आनंद का विचार
यहीं सद् सनातन मेरी आनंद पहचान है।-
अंतरात्मा प्रेम मेरा भूत भविष्य और वर्तमान रहे
आत्मिक अंतर्मन से सदा वास्तविक ज्ञान रहे!...
आत्मा परम आनंद मन आनंदमय सच्चिदानंद बन जाए
अध्यात्मिकता सदा सत्य ज्ञान में मेरे साथ रहे!...
परब्रह्म परमात्मा!|-
मैं तुम्हारा 'कृष्ण' और तुम मेरी 'राधा' बस इतना सोचकर ही मन आह्लादित हो जाता है...
जब भी आता है मन में विचार तुम्हारा प्रिये मेरा बावरा सा मन गदगद होकर प्रेम गीत गाता है...-
वो सब ठीक है लेकिन...
"कछु लोग ऐसी बबासीर होत जिंदगी में
चाएँ जित्तो अच्छो बन जाओ
जिंदगी की-----मारत रहत"
😀😀😀😀😀😀😀😀-
जासें करी ....
के कोउ इंसान खुद को भगवान न समझ लेवे
😂😀😀😂
इन्सान खों इन्सान की औकात दिखत रवे
ई के लाने दुःख बनाओ....
😂😆😆😂-
प्रेम सदैव साक्ष्य बना
प्रत्यक्ष है ये डोर,
प्रेम सदैव मोड़ता है
मोक्ष की ओर|
मुझे 'देह वासना' से 'उबरना' है
आध्यात्मिक प्रेम मे 'डूबना' है,
हे मन पतवार!
ले चल निष्कपट 'प्रेम संगम' की ओर|
मलीन देह 'त्यागनी' है
आत्मा श्वेत 'धरनी' है,
हे अंतस मयूर!
उड़ चल अनंत की ओर |
प्रेम करता 'अपूर्ण' को 'पूर्ण'
प्रेम सहजता 'आंशिक' से 'पूर्ण रूपेण',
हे परमेश्वर हे 'कुलाल'!
ले चले 'चित्त मूर्ति' को
'खंडित' से 'अखंडित' की ओर|-
हम अपनों से हार गए, अपने हमको मार गए।
उनकीबातें ज़हरीली, जानलेवा कर तारतार गए।
औरों से शिक़ायत क्या करते हम ओ मेरे साथी।
जब मेरे अपने आकर "मौत के घाट" उतार गए।
दूसरों का साथ मिला जिनसे उम्मीद न थी हमें।
पर जिनसे थी वो हमको छोड़ बीच मझधार गए।
शर्मओहया से जैसे मानो उनकाकोई राब्ता न हो।
पहले इस्तेमाल किया फिर हमको छोड़ छार गए।
आज भी उठती है कसक इस दिल में मेरे रब्बा।
डूबने को छोड़कर संग वो अपने ले पतवार गए।
उनको ये मालूम था कि ये दिल साफ़ है अपना।
मेरी कड़वी सच्चाई को वो कर सरएबाज़ार गए।
दूसरों से क्या शिकवा करते वो तो पराए ही थे।
पर अपनों के खंजर से मुझ पर किए वार गए।
याद आज भी आती हैं उनकी हमको "अभि"।
पर क्या करे जब रिश्ते की बाज़ी वो हार गए।-