यूँ आधीरात सिर्फ प्रेम कविताओं की रचना नहीं की जाती..
उन्हें महसूस भी किया जाता हैं..
और तो और उन्हें जिया भी जाता हैं..
ख्वावों और ख्यालों में-
तू साथ नही तो तेरी याद ही सही,
वो साथ गुजारी हसीन शाम नही तो आधी रात ही सही ।
आँखो मे नींद नही तो तेरे ख्वाब ही सही,
तेरे बाहों के हार नही तो कविताओ की नदी,
कागज की कश्ती और कलम की पतवार ही सही ।
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जैसे आधी रात में
जागते हैं हम
सोचता हूँ मैं
वो भी जागते होंगे
जो सो रहे हैं कब्र में-
आधी रात को आंख खुली,
मोबाइल पर फिर उंगलियां चली..
हाँ! अपने ही दिल की सुन कर,
कुछ शब्द लिखे फिर तुम्हें याद कर..
बयां किया जो एक सपना सुहाना,
बन गया इक रात का अफसाना..
फिर आधी रात को आंख खुली,
जैसे सपने में तुमसे थी मिली..
तुमने उनका जवाब दिया पूरा,
जो सवाल रह जाता था अधूरा..
बस अब और करीब ना आना,
इल्ज़ाम तो मूझपे लगाएगा जमाना..
अब जो आधी रात को आंख खुली,
इस बार सिर्फ हकीकत से मैं मिली!!-
रात के दो बजने को
हालात ऐसे
कि जज़्बात उबलने को...!
और हम...?
मत पूछो कैसे...!
बस लगता ऐसे
चंद लम्हों की ज़िन्दगी
वो भी अधूरी...!-
बेफिक्र डटे रहते हैं.... आधी रात को भी..
हमारी जिम्मेदारियों का कभी सूर्यास्त नहीं होता !!-
आधी रात को आता है
आइना दिखाने,
वक़्त मेरे पास आता है
वक़्त बिताने...— % &-
आधी रात में,
नींद से उठ कर,
बस यही ख्याल आता है,
कि क्यों तेरा ख्याल,
आज भी मुझे सताता है?-
दिल के किसी कोने में जो छुपा रखे थे जज्बात
अाधी रात तलक रूठी रही नींद
तन्हाई में आँसुओं के साथ बिखरे सारे एहसास...-
अभी तो पूरी रात बाकी है
तेरे मेरे मुलाक़ात की
हर बात बाकी है
तेरा मुझको यूँ
निहारते रहना बाकी है
रहे जो दिल में वो
कहना जज़्बात बाकी है
जो बीते न कभी वो
तेरी मेरी मुलाकात बाकी है
कोई जल्दी नही
अभी तो पूरी रात बाकी है-