बात यूँ तो बड़ी साधारण सी है
हाँ ये कहानी नील आकाश और नीले साग़र की है
सुर्य की किरण में दोनो के रंग बड़े ही चमकते
निले साग़र और नीले अम्बर के रंग बहुत खूब दमकते
रँग दोनों के एक हैं पर कार्य पूर्णतः भिन्न
एक जल तो दूजा आकाश और दिखाते एकदूजे को प्रतिबिंब
दोनो ही किसी से कम नहीं न बाज वो आते न बाज ये आते
आकाश धूप की गर्मी से मेघ बनाते तो साग़र मेघों की कड़वाहट से जल वापस पाते
पर इन दोनों के ही मध्य अथा प्रेम सम्बन्ध है जो कभी न टूटे वैसा संगम है
साग़र आकाश को देखे बिना ना रहे तो आकाश साग़र के बगैर सांस ना ले वैसा बन्धन है
हाँ परम सत्य ये भी है दोनों ही पँच महाभूतों के महत्वपूर्ण भाग हैं
एक में समाया "अमृत" तो दूजा अमृत पान से अजर "अमर" है-
तुम मेरे आकाश का वो तारा हो
जो अटल है
मेरे जीवन की ध्रुवतारा तुम और
हृदय पटल है-
सुनो जिसका करती है
धरती बेसब्री से इंतज़ार
जो झमाझम बरस के
बुझायेगा धरती की प्यास
तुम हो वो.... घनघोर 'काला' बादल
और जो बरसेगा नहीं
ना इकट्ठी कर पाया
पानी की बूंदें भी
उड़ेगा निर्भार,
निर्भयता और निश्चिंतता
के पंख लगाकर
प्रेम के अंतहीन आकाश में सदा के लिए...
वो मैं हूं.... अड़ियल उदासीन "सफेद" बादल !!!
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आइने में तलाशता खुद की हँसी जाने क्यूँ लोगों को उदास दिखता हूँ,
सच है आँसू सँभाले आँखों में तारों की तरह मानो आकाश दिखता हूँ।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)-
दिल को पतंग बनाकर उड़ाया है आकाश में ,
तेरे जैसे कोई नज़र ना आया सारे संसार में।-
♥️ "प्रेम" ♥️
उस रात मैं तुम पर
कविता लिखने का भरसक
प्रयास कर रही थी, प्रेम!!
लिखते लिखते,
आंखों से झरते मेरे आंसू
क़लम की स्याही संग
कागज़ पर काली घटा से फैलते गये
मैं एक के बाद एक
उन गीले कागज़ों को फाड़ती गयी
और गेंद बनाकर
उन्हें टोकरी में फेंकती गयी
अगले रोज़ सुबह उठकर जब मैंने
घर का आंगन गीला पाया
तो सोच में पड़ गयी.....
....................
कि मेरी कागज़ की गीली गेंदें
आकाश तक कैसे पहुंची
ये ही तो हैं वो
जो बादल बन बरस रही हैं
प्रेम से... मेरे "प्रेम" पर !!!-
जब सदविचार
के संस्पर्श से
ढह गयी चट्टान
मेरे प्रश्नों की, संशयों की,
दुविधा की, उलझनों की
तब बहने लगीं अविरत
सहस्रों धाराएं
जिज्ञासाओं की
मिलने समाधान से
......जैसे मिलते हैं
अविचल पहाड़ नदियों से
नदियां अपार समुद्र से
समुद्र व्यापक आकाश से
आकाश "दिव्य प्रकाश" से !!!-